न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वह एक मुश्तेग़ुबार हूँ
मैं नहीं हूँ नग़मा ए जाँ फ़िज़ा कोई सुन के मेरी करेगा क्या
मैं बड़े ही दर्द की हूँ सदा किसी दिल जले की पुकार हूँ
मेरा रंग-रुप बिगड़ गया मेरा हुस्न मुझसे बिछ़ड़ गया
चमन खिजाँ से उजड़ गया मैं उसी की फ़सले-बहार हूँ
कोई फ़ातिहा पढ़ने आए क्यों कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
कोई आ के शम्मा जलाए क्यों कि मैं बेकसी का मज़ार हूँ
न ‘ज़फ़र’ किसी का रक़ीब हूँ न ‘ज़फ़र’ किसी का हबीब हूँ
जो बिगड़ गया वह नसीब हूँ जो उजड़ गया वह दयार हूँ