‘Nadi Se Rishta’, a poem by Rag Ranjan

तब तक नहीं होता
अकेलेपन का एहसास
जब तक ठहरी नदी में
कोई हलचल न हो,
किनारे लगी नाव
चुप देखती है
हवा से लहराती हुई
दोपहर की अलसाई नदी को…

सूरज की किरणें चटकाती हैं जब
नदी का आइना
एकांत कई टुकड़ों में बँट जाता है

नदी के किसी अनंत छोर से ही कहीं
एक नाविक आता है
पुरानी नौका खेते
और पाल के हिलोरों से नदी को जगा जाता है

गहरे तक रूह सिहरती है नदी की
और एकांत को चुनौती देता
यह एहसास जागता है
कि नदी कहीं ठहरी नहीं है
शुरुआत और आख़िर भी नहीं उसका

गहरी नदी में छिपे हैं प्रतिबिम्ब चेहरों के
जो ठहरा, वही जानता है
नदी से रिश्ता कितना गहरा होता है…

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