नींद की एकान्त सड़कों पर भागते हुए आवारा सपने
सेकेण्ड शो से लौटती हुई बीमार टैक्सियाँ
भोथरी छुरी जैसी चीख़ें
बेहोश औरत की ठहरी हुई आँखों की तरह रात…
बिजली के लगातार खम्भे पीछा करते हैं
साए बहुत दूर छूट जाते हैं
साए टूट जाते हैं
मैं अकेला हूँ
मैं टैक्सियों में अकारण खिलखिलाता हूँ,
मैं चुपचाप फुटपाथ पर अँधेरे में अकारण खड़ा हूँ
भोथरी छुरी जैसी चीख़ें
और आँधी में टूटते हुए खुले दरवाज़ों की तरह ठहाके
एक-साथ
मेरे कलेजे से उभरते हैं
मैं अँधेरे में हूँ और चुपचाप हूँ।

सतमी के चाँद की नोक मेरी पीठ में धँस जाती है
मेरे लहू से भीग जाते हैं टैक्सियों के आरामदेह गद्दे
फुटपाथ पर रेंगते रहते हैं सुर्ख़-सुर्ख़ दाग़।
किसी भी ऊँचे मकान की खिड़की से
नींद में बोझिल-बोझिल पलकें
नहीं झाँकती हैं।
किसी हरे पौधे की कोमल, नन्हीं शाखें,
शाखें और फूल,
फूल और सुगंधियाँ
मेरी आत्मा में नहीं फैलती हैं।

टैक्सी में भी हूँ और फुटपाथ पर खड़ा भी हूँ।
मैं
सोए हुए शहर की नस-नस में
किसी मासूम बच्चे की तरह, जिसकी माँ खो गई है,
भटकता रहता हूँ!
(मेरी नयी आज़ादी और मेरी नयी मुसीबतें… उफ़!)
चीख़ और ठहाके
एक-साथ मेरे कलेजे से उभरते हैं।

Book by Rajkamal Chaudhary:

राजकमल चौधरी
राजकमल चौधरी (१३ दिसंबर १९२९ - १९ जून १९६७) हिन्दी और मैथिली के प्रसिद्ध कवि एवं कहानीकार थे। मैथिली में स्वरगंधा, कविता राजकमलक आदि कविता संग्रह, एकटा चंपाकली एकटा विषधर (कहानी संग्रह) तथा आदिकथा, फूल पत्थर एवं आंदोलन उनके चर्चित उपन्यास हैं। हिन्दी में उनकी संपूर्ण कविताएँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं।