विवरण: 

वरिष्ठ लेखक मोहनदास नैमिशराय की आत्मकथा ‘रंग कितने, संग मेरे’

आत्मकथा लिखना अपनी ही भावनाओं को उद्वेलित करना है। अपने ही ज़ख़्मों को कुरेदने जैसा है। जीवन के खुरदरे यथार्थ से रू-ब-रू होना है। ऐसे खुरदरे यथार्थ से, जिसे हममें से अधिकांश याद करना नहीं चाहते। इसलिए कि हमारे अतीत में बेचैनी और अभावों का हिसाब-किताब होता है। हम पीड़ित और शोषित समाज से रहे हैं। उत्पीड़न सहते-सहते बचपन से जवान होते हैं। जैसे गाँव-क़स्बों से नगरों-महानगरों की तरफ़ आते हैं। हमें लगता है कि अब हम जवान हो गये हैं। हम घेटोनुमा गाँव से छुटकारा पाकर शहरों में आ गये हैं। हम उत्पीड़न से बच जायेंगे। ऐसा बहुत-से दलित साथियों का भी मानना रहा है, लेकिन जल्द ही उनका यह भ्रम टूट जाता है।

  • Format: Hardcover
  • Publisher: Vani Prakashan (2019)
  • ISBN-10: 9388434501
  • ISBN-13: 978-9388434508
  • ASIN: B07N8Y6BSJ
पोषम पा
सहज हिन्दी, नहीं महज़ हिन्दी...