विवरण: राजस्थान के झुन्झुनूँ जिले के छोटे से गाँव जयपहाड़ी में जन्मे राहुल कुमार बोयल जिनका नाम ग़ज़ल और कविताओं की इस बड़ी-सी प्यारी दुनिया में गुमनाम रहा या कभी आ ही नहीं पाया। किस्मत भी ग़ज़ब करती है कि कई बार हुनर पूरी उम्र धूल फांकता फिरता है, माहिर लोग अपना वजूद तलाश करते-करते ख़ुद बेवजूद हो जाते हैं। कई बार हल्के-फुल्के विचारों को भी ख़ास तवज्ज़ो मिल जाती है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी राहुल कुमार मुहब्बत के नग़मे लिखते रहे, दिल बहलाते रहे, पढ़ते रहे, पढ़ाते रहे। उनकी कविताओं में प्यार की जितनी पशोपेश है उतनी ही दर्द की साफ़गोई भी। उनकी ग़ज़लें जितनी उम्दा हैं, उससे कहीं ज़्यादा वो ख़ुद एक उम्दा शख़्स हैं। बीच राह में अपनी कला और सपनों को दांव पर रखकर परिवार की ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबे राहुल कुमार राजस्व विभाग के मातहत सरकारी नौकरी करने लगे।

इस बीच ग़ुजारा चलता रहा, कविता बनती रही। ‘राज़’ उनकी ग़ज़लों का तख़ल्लुस रहा है। शायद इसलिए ही रहा होगा क्योंकि उनके पिरोये गये शब्दों में दर्द और उम्मीद की झलक अपने पूरे शबाब में नजर आती है पर कभी जुबाँ पर नहीं लाते। जितनी रहस्यमय ज़िन्दगी होती है उतने शायद वो भी हैं। उनकी कविता प्रकृति-प्रेम और मानव-प्रेम से परिपूर्ण हैं और सोचने को मजबूर करती हैं कि हम किस समाज का आईना हैं। आप कवितायें पढ़िए, कवि हो जाइये। ग़ज़लसरा आपको ज़िन्दगी ख़ुद ब ख़ुद कर देगी।

  • Paperback: 112 pages
  • Publisher: Hind Yugm Blue
  • Language: Hindi
  • ISBN-10: 9387464199
  • ISBN-13: 978-9387464193
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