‘Newton Ka Teesra Niyam’, a poem by Anamika Anu

तुम मेरे लिए शरीर मात्र थे
क्योंकि मुझे भी तुमने यही महसूस कराया।
मैं तुम्हारे लिए आसक्ति थी,
तो तुम मेरे लिए प्रार्थना कैसे हो सकते हो?

मैं तुम्हें आत्मा नहीं मानती,
क्योंकि तुमने मुझे अंत:करण नहीं माना।
तुम आस्तिक धरम-करम मानने वाले,
मैं नास्तिक!
न भौतिकवादी, न भौतिकीविद
पर फिर भी मानती हूँ
न्यूटन का तीसरा नियम –
क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया होती है,
और हम विपरीत दिशा में चलने लगे…

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अनामिका अनु
निवासी - केरल। शिक्षा - एम एस सी (वनस्पति विज्ञान, विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक), पी एच डी - लिमनोलाॅजी (इन्स्पायर फेलोशिप, DST)।प्रकाशन - हंस, कादंबिनी, समकालीन भारतीय साहित्य, नया ज्ञानोदय, वागार्थ, आजकल, मधुमती, कथादेश, पाखी,बया, परिकथा, दोआब, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, जानकीपुल, शब्दांकन, हिंदीनामा, विश्वगाथा, कविकुंभ, केरल ज्योति, शोध सरोवर, संमग्रंथन, हिन्दगी, अनुनाद, फारवर्ड प्रेस, लिटरेचर प्वाइंट, साहित्य मंजरी, पोषम पा, साहित्य कुंज, दुनिया इन दिनों, चौथी दुनिया आदि पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।ईमेल- [email protected]

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