वे सब ‘सौभाग्यवती हो’ का आशीष पाना चाहती हैं
मन पर पड़ी गाँठों को रेशमी कपड़ों से सजा रही हैं
और रेशमी कपड़े अपना सौभाग्य बता रही हैं

देर रात मदहोशी में घर लौटे पतियों को अनदेखा कर
प्यार जानना चाहती हैं पति का, हाथ पर मेंहदी सजा
सुना है पतियों को जताना नहीं आता।

कितने जतन करती हैं मेंहदी के गाढ़े रंग के लिए
जानती हैं पति के लिए जतन नहीं है वश में
आश्वस्त हो जाना चाहती हैं गहरे चढ़े रंग से।

कभी तीज मइया से, कभी वट वृक्ष, कभी करवा सजा
करती हैं मिन्नत पति के ताउम्र साथ बने रहने की
पर पति के पास कोई सुनवाई नहीं होती कभी

वो लगना चाहती हैं तसल्ली-भर सुन्दर
कि पैर में चक्कर पड़े भतारों की अन्ततः
वापसी हो सके घर में उनके पास

वो सब निर्जला रह उम्मीद कर रही हैं
थोड़े से शर्म के पानी की
जो शायद कभी चमक जाए ख़सम की आँखों में।

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