ये हाथ पकड़ना और
छुड़ाना क्या है
क्या है ये तेरा मुस्कुराना और
रूठ जाना
हर पल तेरा यूँ
अलग हो जाना
कभी पास तो दूर हो जाना
क्यों? तुम
गणित के उस चैप्टर की तरह हो
जिसमें साइन, कोस और ठिटा
कब? कहाँ? और कैसे? आ जाते हैं
कुछ पता ही नहीं चलता
सच कहूँ तो मुझे इसका फ़ॉर्मूला भी नहीं पता
फिर भी जानना चाहता हूँ इन्हें
तुम्हारी तरह..
प्रयास करता हूँ दिनोदिन
हर पृष्ठ पर उकेरता हूँ तुम्हें
ताकि जान सकूँ
तुम्हें हल करने का एक बेहतरीन फ़ॉर्मूला

तुम मुझे कवि मत समझना
मैं एक गणितज्ञ
की तरह हूँ
जिसमें वह रखता है दो राशियों को
कभी पहले ख़ुद को फिर तुम्हें
नहीं
पहले तुम्हें फिर अपने आप को
ये राशियां हो ही जाती हैं “सार्थक”
बिल्कुल तुम्हारी तरह…
और रचतीं हैं
प्रेम का नूतन अध्याय
शून्य के भीतर
चलता है अपना प्रेमी दायरा
जहाँ उसे आरंभ बिंदु से लेकर ले जाया जाता है अनन्त की ओर….
धुंध उजाले साये में भी गाढ़ा होता जाता है
और रात
अंधेरे में घुलता-मिलता-सा चुप..

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