‘On Aging’, a poem by Maya Angelou, from ‘And Still I Rise’
अनुवाद: अनुराग तिवारी
जब तुम मुझे ऐसे शांत बैठे देखोगे
जैसे अलमारी में छूटा कोई पुराना गाउन
तो ये मत सोचना कि मुझे ज़रूरत है तुम्हारी हल्की-फुल्की बातों की
जबकि होगा यह कि मैं अपने अंदर की आवाज़ सुन रही होऊँगी
मुझे मत दिखाना अपनी दया
और मत देना कोई सहानुभूति भी
कर सको कुछ तो सिर्फ़ समझना मुझको
जो न भी कर सको तो मुझे कोई हर्ज नहीं, कोई फ़र्क़ नहीं।
जब चला जाएगा मेरी हड्डियों का लचीलापन
और उनमें बस जाएगा दर्द
जब मेरे पैरों को रास नहीं आएगा सीढ़ियाँ चढ़ना तक भी
तब भी तुम करना एक ही अहसान
कि मत देना मुझे कोई आराम कुर्सी भी
तब भी जब तुम देखोगे मुझे लड़खड़ाकर चलते और ठोकर खाकर गिरते,
मत निकालना उसके ग़लत मायने
कि थका होना परास्त होना नहीं है
कि हर विदा का मतलब जाना नहीं होता
हाँ ये बात और है कि मेरे बाल झड़ रहे होंगे
और मेरी ठोढ़ी पिचक सी गयी होगी
कि मैं तब भी वही रहूँगी जो हमेशा थी
हाँ ये बात और है कि मेरे सिकुड़े हुए फेफड़ों में
बहुत कम हवा बची होगी
फिर भी
फिर भी ले पाऊँगी साँस
क्या ये ख़ुशक़िस्मती कम होगी!
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