कानों की इक नगरी देखी, जिसमें सारे काने देखे
एक तरफ़ से अहमक़ सारे, एक तरफ़ से सियाने थे
कानों की इस नगरी के सब रीत रिवाज अलाहदा थे
रोग अलाहदा बस्ती में थे और इलाज अलाहदा थे

दो-दो काने मिलकर पूरा सपना देखा करते थे
गंगा के संगम से काने जमुना देखा करते थे
चाँदनी रात में छतरी लेकर बाहर जाया करते थे
ओस गिरे तो कहते हैं वाँ सर फट जाया करते थे
दरिया पुल पर चलता था, पानी में रेलें चलती थीं
लंगूरों की दुम पर अंगूरों की बेलें पकती थीं

छूत की इक बीमारी फैली एक दफ़ा उन कानों में
भूख के कीड़े सुनते हैं निकले गंदुम के दानों में
रोज़ कई काने बेचारे मरते थे बीमारी में
कहते हैं राजा सोता था सोने की अलमारी में

घण्टी बाँध के चूहे जब बिल्ली से दौड़ लगाते थे
पेट पे दोनों हाथ बजाकर सब क़व्वाली गाते थे
तब कानी भैंस ने फूल फुला कर छेड़ा बीन का बाजा
और काला चश्मा पहन के सिंहासन पर आया राजा

दुःख से चश्मे की दोनों ही आँखें पानी-पानी थीं
देखा उस काने राजा की दोनों आँखें कानी थीं

झूठा है जो अंधों में काना राजा है कहता है
जाकर देखो कानी नगरी, अंधा राजा रहता है!

गुलज़ार की नज़्म 'किताबें'

Book by Gulzar:

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गुलज़ार
ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा (जन्म-१८ अगस्त १९३६) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। गुलजार को वर्ष २००२ में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष २००४ में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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