1

मैं और पाली बालकनी में बैठे दोनों
रोड पे आती-जाती लड़कियाँ ताड़ा करते हैं
जुमले कसते हैं
मैं बोलता हूँ, वो भौंकता है

“इतनी लम्बी ऊँची औरत
नेकर में नंगी लगती है”—मैंने कहा

उसने कहा कि “नेचुरल को नंगी कहते हो?
मैं क्या तुम को नंगा लगता हूँ?
भूऊँ-भूऊँ…”

पाली की बातों में काफ़ी ‘लॉजिक’ है
मुझको अक्सर लाजवाब कर देता है

“देखो पाली, पारसी लेडी मोटी हो गई”

“टॉमी रोज़ घुमाने ले जाता है लेकिन… कितना खाती है!”

“कौन किसे ले जाता है?”

“ख़ुद ही देख लो, कौन किसे खींच रहा है?
भूऊँ-भूऊँ…”

“छोटे से उस पिल्ले का ‘शेरू’ नाम ग़लत लगता है
शेर से क्या निस्बत कुत्ते की? क्या कहते हो?”

“राम, मोहम्मद, लक्ष्मण में से कौन है जो उनसे मिलता है?
उनसे क्या निस्बत है उनकी?”

फिर एक वक़्फ़ा लेकर बोला—
“आप लोग अजीब से नाम रखा करते हो?
भगवान के और पैग़म्बरों के, अवतारों के,
और फिर कितने लम्बे-लम्बे… राम करण अवतार बजाज!”

फिर कुछ सोचा, बोला—
“अच्छा है गुलज़ार के आगे-पीछे तुम कुछ लिखते नहीं हो
हम जैसा है
इसको भी अब गुल्लू कर लो!”

2

बड़ी मुश्किल में था
पाली को ‘पाली’ कहके अब कैसे बुलाऊँ?
पर्तिपाल मेरा दोस्त और पाली…
ड्राइंगरूम में हम तीन ही थे
बुलाऊँ ‘पाली’ और पर्तिपाल बोला तो?

पर्तिपाल ने पूछा, “ये कुत्ता कब से पाला है?”

कनखियों से मुझे पाली ने देखा
मैं पाली को कभी कुत्ता नहीं कहता
गधा कह दूँ कभी ग़ुस्से में लेकिन…

मैं बोला—”बहुत छोटा था जब आया था… मतलब जब मैं लाया था
हथेली पर उठा लेता था, जेब में आ जाता था मेरी…”

मुझे डर था कि पाली भौंक न दे…

मगर पर्तिपाल फिर बोला—”वफ़ादारी तो कुत्तों की!
वफ़ा के मामले में इसके जैसा जानवर कोई नहीं है।”

“क्या तुम नहीं हो?” ज़रा-सा बड़बड़ाया पाली—
“हमें भी आदमी से अच्छा ख़िदमतगार अब कोई नहीं लगता।”

“मगर कुत्ते को कुत्ता देखकर, क्यूँ भौंकता है?” पर्तिपाल बोला।

“वही उनकी ज़ुबान है यार! छोड़ो!! और क्या वो उर्दू बोलेंगे?”

मगर पर्तिपाल की सुई वहीं अटकी हुई थी—
“कहावत क्यों है, कुत्ता कुत्ते का बैरी?”

“वही करते हैं आदम भी!” नज़र पाली की, कुछ यूँ कह रही थी।

मगर पर्तिपाल बोला—
“बड़ा मुश्किल है चौदह सुइयाँ लगवाना, कुत्ता काट ले तो!”

ज़रा-सा फुसफुसाया फिर से पाली—
“हमें तुम काट लो तो मर ही जाएँ… (शर्म से शायद?)”

मैं कुछ-कुछ सटपटाने लग गया था
वो पाली सूँघ लेता है…
ज़रा-सा दुम से छू के, आँख मारी, “टेक इट इज़ी…!”

बिलाख़िर उठ गया पर्तिपाल जाने के लिए… बोला—
“बड़ा कमगो है ये कुत्ता
मुझे लगता है कुछ तुम पर गया है!… नाम क्या है?”

मैंने लम्बी साँस ली, बोला—
‘पर्तिपाल’ लेकिन प्यार से हम पाली कहते हैं।

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गुलज़ार
ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा (जन्म-१८ अगस्त १९३६) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। गुलजार को वर्ष २००२ में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष २००४ में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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