तमाम दृश्यों को हटाता, घसीटता और ठोकर मारता हुआ
चारों तरफ़ एक ही दृश्य है
बस एक ही आवाज़
जो पैरों के उठने और गिरने की हुआ करती है
वे तमाम लोग एक जैसे हैं
उनकी मुश्किलें एक जैसी हैं
उनके तलवे एक जैसे हैं
और उनके छालों में भी कोई फ़र्क़ नहीं
हालाँकि वे अलग-अलग दिशा से आ रहे हैं
वे अलग-अलग दिशा में जा रहे हैं
लेकिन उनमें सब कुछ एक जैसा है
यहाँ तक कि उनकी भूख एक जैसी है
उनकी प्यास और नींद और स्वप्न में भी कोई अन्तर नहीं
यही तो जोड़ता है उन्हें और
बताता है कि जिन्हें महज़ कुछ संख्या मानकर चलते हैं लोग
वे दरअसल मुट्ठी भर नहीं हैं कि भुला दिया जाए
अब तक वे जहाँ थे वहाँ देखना असम्भव बना दिया गया था
लेकिन जब वे बाहर निकल गए हैं तो
उन्हें रोकना नामुमकिन लग रहा है
वे पैदल चलते लोग
जब चलने लगे तो लगातार चलते रहे दिन-रात
उन्हें लगा कि वे अपने घर जा रहे हैं
लेकिन वे किस रास्ते पर चल रहे हैं कि
उनका घर नहीं आ रहा
उनके रास्ते लम्बे होते जा रहे हैं
उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं
उनके पैरों से चमड़ी धूल की तरह अलग हो रही है
मैं हैरान हूँ ये देखकर कि ऐसे कठिन समय में
जबकि घरों में बन्द रहने की हिदायतें दी जा रही हैं
उनके घर नक़्शे से गुम हो गए हैं
उनका परिवार बिखर गया है
उनकी दुनिया उजड़ गई है
वे पैदल चलते लोग उसी दुनिया को खोज रहे हैं
अपने बच्चों, स्त्रियों और थैलों को कन्धे पर टिकाकर
उनके चलने के हौसले को देखकर
यही लगता है कि अभी तो वे नहीं रुकेंगे।
शंकरानंद
15-05-2020