पकते गुड़ की गरम गन्ध से सहसा आया
मीठा झोंका। आह, हो गई कैसी दुनिया।
“सिकमी पर दस गुना।” सुना फिर था वही गला
सबने गुपचुप सुना, किसी ने कुछ नहीं कहा।
चूँ-चूँ बस कोल्हू की, लोहे से नहीं सहा
गया। चिलम फिर चढ़ी, “खैर, यह पूस तो चला… ”
पूरा वाक्य न हुआ कि आया खरतर झोंका
धधक उठा कौड़ा, पुआल में कुत्ता भौंका।