‘Panchlight’, a story by Phanishwarnath Renu
पिछले पन्द्रह दिनों से दंड-जुरमाने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में। गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं। हरेक जाति की अलग-अलग ‘सभाचट्टी’ है। सभी पंचायतों में दरी, जाजिम, सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं- पेट्रोमेक्स जिसे गाँववाले पंचलाइट कहते हैं।
पंचलाइट खरीदने के बाद पंचों ने मेले में ही तय किया- दस रुपए जो बच गए हैं, इससे पूजा की सामग्री खरीद ली जाए- बिना नेम-टेम के कल-कब्जेवाली चीज़ का पुन्याह नहीं करना चाहिए। अंग्रेजबहादुर के राज में भी पुल बनाने से पहले बलि दी जाती थी।
मेले से सभी पंच दिन-दहाड़े ही गाँव लौटे; सबसे आगे पंचायत का छड़ीदार पंचलाइट का डिब्बा माथे पर लेकर और उसके पीछे सरदार दीवान और पंच वगैरह। गाँव के बाहर ही ब्राह्मणटोले के फुंटगी झा ने टोक दिया- “कितने में लालटेन खरीद हुआ महतो?”
“…देखते नहीं हैं, पंचलैट है! बामनटोली के लोग ऐसे ही ताब करते हैं। अपने घर की ढिबरी को भी बिजली-बत्ती कहेंगे और दूसरों के पंचलैट को लालटेन!”
टोले-भर के लोग जमा हो गए। औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे सभी काम-काज छोड़कर दौड़े आए, “चल रे चल! अपना पंचलैट आया है, पंचलैट!”
छड़ीदार अगनू महतो रह-रहकर लोगों को चेतावनी देने लगा- “हाँ, दूर से, ज़रा दूर से! छू-छा मत करो, ठेस न लगे!”
सरदार ने अपनी स्त्री से कहा, “साँझ को पूजा होगी; जल्दी से नहा-धोकर चौका-पीढ़ी लगाओ।”
टोले की कीर्तन-मंडली के मूलगैन ने अपने भगतिया पच्छकों को समझाकर कहा, “देखो, आज पंचलैट की रोशनी में कीर्तन होगा। बेताले लोगों से पहले ही कह देता हूँ, आज यदि आखर धरने में डेढ़-बेढ़ हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैकाट!”
औरतों की मण्डली में गुलरी काकी गोसाईं का गीत गुनगुनाने लगी। छोटे-छोटे बच्चों ने उत्साह के मारे बेवजह शोरगुल मचाना शुरू किया।
सूरज डूबने के एक घंटा पहले से ही टोले-भर के लोग सरदार के दरवाजे पर आकर जमा हो गए- पंचलैट, पंचलैट!
पंचलैट के सिवा और कोई गप नहीं, कोई दूसरी बात नहीं। सरदार ने गुड़गुड़ी पीते हुए कहा, “दुकानदार ने पहले सुनाया, पूरे पाँच कौड़ी पाँच रुपया। मैंने कहा कि दुकानदार साहेब, यह मत समझिए कि हम लोग एकदम देहाती हैं। बहुत-बहुत पंचलैट देखा है। इसके बाद दुकानदार मेरा मुँह देखने लगा। बोला, लगता हैं आप जाति के सरदार हैं! ठीक है, जब आप सरदार होकर खुद पंचलैट खरीदने आए हैं तो जाइए, पूरे पाँच कौड़ी में आपको दे रहे हैं।”
दीवानजी ने कहा, “अलबत्ता चेहरा परखनेवाला दुकानदार है। पंचलैट का बक्सा दुकान का नौकर देना नहीं चाहता था। मैंने कहा, देखिए दुकानदार साहेब, बिना बक्सा पंचलैट कैसे ले जाएँगे! दुकानदार ने नौकर को डाँटते हुए कहा, क्यों रे! दीवानजी की आँखों के आगे ‘धुरखेल’ करता है; दे दो बक्सा!”
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टोले के लोगों ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी निगाहों से देखा। छड़ीदार ने औरतों की मंडली में सुनाया- “रास्ते में सन्न-सन्न बोलता था पंचलैट!”
लेकिन… ऐन मौके पर ‘लेकिन’ लग गया! रूदल साह बनिये की दुकान से तीन बोतल किरासन तेल आया और सवाल पैदा हुआ, पंचलैट को जलाएगा कौन!
यह बात पहले किसी के दिमाग में नहीं आई थी। पंचलैट खरीदने के पहले किसी ने न सोचा। खरीदने के बाद भी नहीं। अब, पूजा की सामग्री चौक पर सजी हुई है, कीर्तनिया लोग खोल-ढोल-करताल खोलकर बैठे हैं और पंचलैट पड़ा हुआ है। गाँववालों ने आज तक कोई ऐसी चीज़ नहीं खरीदी, जिसमें जलाने-बुझाने का झंझट हो। कहावत है न, भाई रे, गाय लूँ? तो दुहे कौन?…लो मजा! अब इस कल-कब्जेवाली चीज़ को कौन बाले?
यह बात नहीं कि गाँव-भर में कोई पंचलैट बालनेवाला नहीं। हरेक पंचायत में पंचलैट है, उसके जलानेवाले जानकार हैं। लेकिन सवाल है कि पहली बार नेम-टेम करके, शुभ-लाभ करके, दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से पंचलैट जलेगा? इससे तो अच्छा है पंचलैट पड़ा रहे। जिन्दगी-भर ताना कौन सहे! बात-बात में दूसरे टोले के लोग कूट करेंगे- तुम लोगों का पंचलैट पहली बार दूसरे के हाथ से…! न, न! पंचायत की इज्जत का सवाल है। दूसरे टोले के लोगों से मत कहिए!
चारों ओर उदासी छा गई। अँधेरा बढ़ने लगा। किसी ने अपने घर में आज ढिबरी भी नहीं जलाई थी। …आज पंचलैट के सामने ढिबरी कौन बालता है!
सब किए-कराए पर पानी फिर रहा था। सरदार, दीवान और छड़ीदार के मुँह में बोली नहीं। पंचों के चेहरे उतर गए थे। किसी ने दबी हुई आवाज में कहा, “कल-कब्जेवाली चीज का नखरा बहुत बड़ा होता है।”
एक नौजवान ने आकर सूचना दी- “राजपूत टोली के लोग हँसते-हँसते पागल हो रहे हैं। कहते हैं, कान पकड़कर पंचलैट के सामने पाँच बार उठो-बैठो, तुरन्त जलने लगेगा।”
पंचों ने सुनकर मन-ही-मन कहा, “भगवान ने हँसने का मौका दिया है, हँसेंगे नहीं?” एक बूढ़े के आकर खबर दी, “रूदल साह बनिया भारी बतंगड़ आदमी है। कह रहा है, पंचलैट का पम्पू जरा होशियारी से देना!”
गुलरी काकी की बेटी मुनरी के मुँह में बार-बार एक बात आकर मन में लौट जाती है। वह कैसे बोले? वह जानती है कि गोधन पंचलैट बालना जनता है। लेकिन, गोधन का हुक्का-पानी पंचायत से बंद है। मुनरी की माँ ने पंचायत से फरियाद की थी कि गोधन रोज उसकी बेटी को देखकर ‘सलम-सलम’ वाला सलीमा का गीत गाता है- ‘हम तुमसे मोहोब्बत करके सलम!’ पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था। दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन, और अब टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया। परवाह ही नहीं करता है। बस, पंचों को मौका मिला। दस रुपया जुरमाना! न देने से हुक्का-पानी बन्द। आज तक गोधन पंचायत से बाहर है। उससे कैसे कहा जाए! मुनरी उसका नाम कैसे ले? और उधर जाति का पानी उतर रहा है।
मुनरी ने चालाकी से अपनी सहेली कनेली के कान में बात डाल दी- कनेली!…चिगो, चिध-SS, चिन…! कनेली मुस्कुराकर रह गई- “गोधन तो बन्द है। मुनरी बोली- “तू कह तो सरदार से!”
“गोधन जानता है पंचलैट बालना” कनेली बोली।
“कौन, गोधन? जानता है बालना? लेकिन…।”
सरदार ने दीवान की ओर देखा और दीवान ने पंचों की ओर। पंचों ने एकमत होकर हुक्का-पानी बन्द किया है। सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारनेवाले गोधन से गाँव-भर के लोग नाराज थे। सरदार ने कहा, “जाति की बन्दिश क्या, जबकि जाति की इज्जत ही पानी में बही जा रही है! क्यों जी दीवान?”
दीवान ने कहा, “ठीक है।”
पंचों ने भी एक स्वर में कहा, “ठीक है। गोधन को खोल दिया जाए।”
सरदार ने छड़ीदार को भेजा। छड़ीदार वापस आकर बोला, “गोधन आने को राजी नहीं हो रहा है। कहता है, पंचों की क्या परतीत है? कोई कल-कब्जा बिगड़ गया तो मुझे दंड-जुरमाना भरना पड़ेगा।”
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छड़ीदार ने रोनी सूरत बनाकर कहा, “किसी तरह गोधन को राजी करवाइए, नहीं तो कल से गाँव में मुँह दिखाना मुश्किल हो जाएगा।”
गुलरी काकी बोली, “जरा मैं देखूँ कहके?”
गुलरी काकी उठकर गोधन के झोंपड़े की ओर गई और गोधन को मना लाई। सभी के चेहरे पर नई आशा की रोशनी चमकी। गोधन चुपचाप पंचलैट में तेल भरने लगा। सरदार की स्त्री ने पूजा की सामग्री के पास चक्कर काटती हुई बिल्ली को भगाया। कीर्तन-मंडली का मूलगैन मुरछल के बालों को सँवारने लगा। गोधन ने पूछा, “इसपिरीट कहाँ है? बिना इसपिरीट के कैसे जलेगा?”
…लो मजा! अब यह दूसरा बखेड़ा खड़ा हुआ। सभी ने मन-ही-मन सरदार, दीवान और पंचों की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट किया- बिन बूझे-समझे काम करते हैं ये लोग! उपस्थित जन-समूह में फिर मायूसी छा गई। लेकिन, गोधन बड़ा होशियार लड़का है। बिना इसपिरीट के ही पंचलैट जलाएगा- “थोड़ा गरी का तेल ला दो!” मुनरी दौड़कर गई और एक मलसी गरी का तेल ले आई। गोधन पंचलैट में पम्प देने लगा।
पंचलैट की रेशमी थैली में धीरे-धीरे रोशनी आने लगी। गोधन कभी मुँह से फूँकता, कभी पंचलैट की चाबी घुमाता। थोड़ी देर के बाद पंचलैट से सनसनाहट की आवाज निकलने लगी और रोशनी बढ़ती गई; लोगों के दिल का मैल दूर हो गया। गोधन बड़ा काबिल लड़का है!
अन्त में पंचलाइट की रोशनी से सारी टोली जगमगा उठी तो कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में, महावीर स्वामी की जय-ध्वनि के साथ कीर्तन शुरू कर दिया। पंचलैट की रोशनी में सभी के मुस्कुराते हुए चेहरे स्पष्ट हो गए। गोधन ने सबका दिल जीत लिया। मुनरी ने हसरत-भरी निगाह से गोधन की ओर देखा। आँखें चार हुईं और आँखों-ही-आँखों में बातें हुईं- ‘कहा-सुना माफ करना! मेरा क्या कसूर!’
सरदार ने गोधन को बहुत प्यार से पास बुलाकर कहा, “तुमने जाति की इज्जत रखी है। तुम्हारा सात खून माफ। खूब गाओ सलीमा का गाना।”
गुलरी काकी बोली, “आज रात मेरे घर में खाना गोधन!”
गोधन ने फिर एक बार मुनरी की ओर देखा। मुनरी की पलकें झुक गईं।
कीर्तनिया लोगों ने एक कीर्तन समाप्त कर जय-ध्वनि की- ‘जय हो! जय हो!’ …पंचलैट के प्रकाश में पेड़-पौधों का पत्ता-पत्ता पुलकित हो रहा था।
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Very nice
इसपिरीट इसका क्या अर्थ [email protected].
Pr reply de plz.
Pirit ek jwalansheel taral padarth hota hai. Jaise ki petrol
Sprit jalane ke lia estemal kiya jata sir ji
Spirit means rectified alcohol, or ethyl alcohol of agricultural origin is highly concentrated ethanol that has been purified by means of repeated distillation in a process called rectification.
This is the best book ever in life. I like all the story.
I read this story for my board examination 2018
I learn’t this story very well…..
Hey!! All the best for your exam. 🙂