मेरे दोस्त
जब भी चलना
तो बाघ की तरह नहीं चलना

चलना चींटियों की तरह
सबके साथ बिना डरे, बिना थके,
बिना रुके, एकदम शान्त—केवल
अपने पथ पर

जब भी भरो उड़ान
तो किसी बाज़ की तरह नहीं,
तितली की तरह भरना
अपने फूलों को छूते हुए
बिखेरते हुए सर्वत्र ख़ुशबू,
बिखरेते हुए किसी दूसरे फूल के खिलने के लिए परागकण

पत्थर की तरह कठोर कभी मत
होना
होना किसी पोखर के पानी की तरह

अपनी कठोरता की परत के नीचे
बचाए रखना इतनी तरलता कि भीतर
तैरती रहें उसमें मछलियाँ

मेरे दोस्त
जब भी घिरे हो मुसीबतों से तो चपलता और
चालाकी के लिए किसी गीदड़ या सियार को नहीं
एक छोटी-सी गिलहरी
को याद करना
जो एक ज़रा-सी आहट पर हो जाती है चौकन्नी या उड़ा ले
जाती पलक झपकते ही आँखों के आगे से अखरोट
का कोई टुकड़ा

जब भी बनो किसी के साथी,
थामों किसी का हाथ
तो आदमी की तरह कभी मत थामना,
थामना किसी दरख़्त की तरह

देते रहना सबको अपनी छाँव में मीठी नींद
बिना जाने दोस्त-दुश्मन की परिभाषा
और गाते रहना दरख़्त की भाषा में अपनी चिड़ियों के
लिए मीठे प्रेम गीत…

मुदित श्रीवास्तव की कविता 'पंच-अतत्व'

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