‘Pani Ki Tarah Izzat’, a poem by Rahul Boyal

कार वाले साहब तो दुत्कार कर चले गये
कि हमारी छातियों में ईर्ष्या के पत्थर गड़े हैं
अब साहब को कौन समझाये!
हमारी छातियों में उम्मीदें गड़तीं हैं
पत्थर तो पीठ को जानते हैं।

तुम्हारे यह कहते ही
कि हमारी जीभ लालसाओं से छिली हुई है,
जीभ के छालों की जाँच किये बग़ैर ही
हम अपनी ज़ुबाँ काट सकते हैं
जबकि हमारे वजूद जानते हैं
हम बस दो जून की फ़िक्र करते हैं
हमारी जीभ तो बस माँगने के लिए है।

इसलिए मत कहो कि हम
मैल से नहाये हुए बाशिन्दे हैं
साहिब! ये तो आप भी जानते हैं
कि ग़ुरबत में यूँ तो हर चीज़ की किल्लत है
पर पानी भी हमें इस इज़्ज़त की तरह ही मिलता है!

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राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]

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