‘Paper Wala Chhotu’, a poem by Vishal Singh
उसने अपना हक़ माँगा था,
उसको थप्पड़ फिर क्यूँ मारा
जिस पेपर वाले छोटू के
बाबा अँधे, अम्मा तारा
बस्ता सपना, क़िस्मत दुश्मन
फिर भी आँखों में सपने सौ
कहता है धीरे से साहब
मारो मत, मेरे पैसे दो
मेरा रस्ता तकता होगा
घर पे छोटा भाई प्यारा
लेनी है दो रोटी मुझको
भूखा होगा वो बेचारा
छोटू-छोटू क्या करते हो
तुम उसके आगे छोटे हो
तुम बूते पे अब भी घर के
वो ख़ुद में अपना घर सारा
उसने अपना हक़ माँगा था,
उसको थप्पड़ फिर क्यूँ मारा…
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