आज ना ही आओ मिलने, ये मुलाकात रहने दो,
कुछ देर को मुझको, आज मेरे ही साथ रहने दो,

अन्धेरों की, उजालों की, हवाओं की, चिरागों की,
या अपनी ही कोई बात छेड़ो, मेरी बात रहने दो,

मैं सोया कि नहीं सोया, मैं रोया कि नहीं रोया
और भी काम हैं तुमको, ये तहकीकात रहने दो,

यूँ तो सैकड़ों रात जागा हूँ, तुम्हारे ही ख्यालों में,
पर सोना चाहता हूँ अब, आज की रात रहने दो,

जाते-जाते ‘दोस्त’, मेरा एक मश्वरा है तुमको,
कि इश्क़ करो तो बे-हद, यूँ एहतियात रहने दो।

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