स्त्री उतनी ही अधिक स्वतन्त्र है
जितनी अधिक परिधि
उसके पुरुष ने रेखांकित किए हैं
अलग-अलग वर्गों के वृत
अलग-अलग नाप लिए
किन्तु स्त्री क्या कभी
ख़ुद त्रिज्या निर्धारित कर पायी है?

पुरुष के अनेक रूप हैं
पिता, पुत्र, भाई, प्रेमी, पति
स्त्री हर रूप में स्त्री ही रही है
और यह स्त्री बने रहने का संघर्ष भी कुछ कम नहीं है
पुरुष चाहता है
उसे देवी बना पूजना
या पतिता कह अपमानित करना
वृत्त की किसी चाप में भी
स्त्री के इंसान होने का ज़िक्र नहीं है…

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डॉ. निधि अग्रवाल
डॉ. निधि अग्रवाल पेशे से चिकित्सक हैं। लमही, दोआबा,मुक्तांचल, परिकथा,अभिनव इमरोज आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व आकाशवाणी छतरपुर के आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रमों में उनकी कहानियां व कविताएँ , विगत दो वर्षों से निरन्तर प्रकाशित व प्रसारित हो रहीं हैं। प्रथम कहानी संग्रह 'फैंटम लिंब' (प्रकाशाधीन) जल्द ही पाठकों की प्रतिक्रिया हेतु उपलब्ध होगा।

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