किसी परिंदे की रात पेड़ पर फड़फड़ाती है
रात, पेड़ और परिंदा
अँधेरे के ये तीनों राही
एक सीध में आ खड़े होते हैं
रात अँधेरे में फँस जाती है
रात तू ने मेरी छाँव क्या की
जंगल छोटा है
इसलिए तुम्हें गहरी लग रही हूँ
गहरा तो मैं परिंदे के सो जाने से हुआ था
मैं रोज़ परिंदे को दिलासा देने के बाद
अपनी कमान की तरफ़ लौट जाती हूँ
तेरी कमान क्या सुब्ह है
मैं जब मरी तो मेरा नाम रात रख दिया गया
अब मेरा नाम फ़ासला है
तेरा दूसरा जन्म कब होगा
जब ये परिंदा बेदार होगा
परिंदे का चहचहाना ही मेरा जन्मदिन है
फ़ासला और पेड़ हाथ मिलाते हैं
और परिंदे की आँख खुल जाती है…


