पेड़ों नें छिपाकर रखी तुम्हारे लिए छाँव
अपनी जड़ों में दबाकर रखी मिट्टी
बुलाया बादल और बारिशों को
सहेजे रखा पानी अपनी नसों में

दिए तुम्हें रंग
तितलियाँ, परिन्दें
घोंसलें और झूले

पेड़ों ने दिए तुम्हें घर
घर के किवाड़ और खिड़कियों के पलड़े
भी दिए तुम्हें

खुद जलकर दी तुम्हें आग
बुझकर के दिया कोयला
सड़कर के दिया ईंधन

पेड़ों ने तुम्हें
वह सब कुछ दिया
जिससे तुम जीवित हो

पेड़ों ने दिया तुम्हें
सम्पूर्ण जीवन
और
पेड़ों को तुमने दी

मृत्यु!

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मुदित श्रीवास्तव
मुदित श्रीवास्तव भोपाल में रहते हैं। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और कॉलेज में सहायक प्राध्यापक भी रहे हैं। साहित्य से लगाव के कारण बाल पत्रिका ‘इकतारा’ से जुड़े हैं और अभी द्विमासी पत्रिका ‘साइकिल’ के लिये कहानियाँ भी लिखते हैं। इसके अलावा मुदित को फोटोग्राफी और रंगमंच में रुचि है।

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