‘Peepal Si Ladkiyaan’, a poem by Ritu Niranjan

उन्हें रोपा नहीं जाता घर के आँगन में
ना ही सींचा जाता है पानियों के निवाले देकर
मगर तब भी
वे उग आती हैं
छतों के सुनसान पड़े कोनों में
कच्ची पथरीली पगडण्डियों पर
उजाड़ खण्डहरों के अहातों में
और हर उस जगह
जहाँ नहीं पनपते
गुलाब
मोंगरा
या हरसिंगार

वे भाग्य की हथेली पर अंकित अंधविश्वास हुईं

उन्हें बताया जाता रहा
दिव्यत्व का अथाह कोश
पवित्रता का भण्डार
और वे पूजी जाती रहीं घर-घर
मगर पनाह पाने से रहीं वंचित
कुनबे के हर आँगन में

मगर तब भी
बारिश की हर फुहार के साथ
वे बढ़ती हैं निरन्तर
सहती हैं सूरज का ताप
और सहेजती हैं अपनी धानी रंगत
लड़ती हैं हवा के बेरहम थपेड़ों से
और रहती हैं डटी अपनी जगह पर
खाती हैं ज़माने भर की धूल
और देती हैं बदले में
ठण्डी छाँह
हवा की नर्म थपकियाँ
और एक सुकूनदेय पनाह

लड़कियाँ पीपल के पेड़ सरीखी होती हैं…

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