पेरुमल मुरुगन के उपन्यास ‘पूनाची’ से उद्धरण | Quotes by Perumal Murugan from ‘Poonachi’
“मैं इंसानों के बारे में लिखने के प्रति आशंकित रहता हूँ; देवताओं के बारे में लिखने से तो और भी डरता हूँ। शायद राक्षसों के बारे में लिख सकता हूँ। राक्षसी जीवन की थोड़ी-बहुत आदत भी है। यहाँ उनसे संगत बना भी सकता था। इसलिए इस बार लगा, मुझे जानवरों के विषय में लिखना चाहिए। जानवरों की सिर्फ़ पाँच ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनसे मैं भली-भाँति परिचित हूँ। कुत्ते और बिल्लियों का इस्तेमाल कविताओं में करता हूँ। गायों या सूअरों के बारे में लिखने पर पाबंदी है। तो बची रह गईं बकरियाँ और भेड़ें।”
“एक साधारण जीवन की पैदाइश कभी कोई निशानी नहीं छोड़ती, है कि नहीं?”
“एक दुश्मन का स्वागत भी थोड़े से सम्मान के साथ किया जाना चाहिए।”
“निज़ाम के पास किसी भी पल, किसी भी मुश्किल हालात में अपने लोगों के ख़िलाफ़ जाने की, उन्हें दुश्मन और षड्यंत्रकारी करार देने की ताक़त थी।”
“इस देश में ज़्यादातर बकरियाँ सफ़ेद थीं। कुछ भूरी भी थीं, लेकिन काली बड़ी कम दिखायी देती थीं। ऐसा कहा जाता है कि चूँकि काली बकरियाँ अंधेरे में अपराध करते हुए पकड़ में नहीं आ पाती थीं, इसलिए ये अफ़वाह थी कि सरकार ने जानबूझकर उनका ख़ात्मा करा डाला था।”
“सब जानते थे कि सरकार के साथ किस तरह पेश आना है। अधिकारियों के सामने ज़ुबान बंद रहने के लिए, हाथ सजदे में उठने के लिए, घुटने मुड़ने और टेकने के लिए, पीठ झुकने के लिए, और शरीर सिकुड़ने के लिए थे।”
“‘अरे ज़रा धीरे बोलिए सर। निज़ाम के कान दीवारों में भी लगे हुए हैं।’
‘लेकिन पुरानी कहावत तो ये है कि निज़ाम को सुनायी नहीं देता।’
‘निज़ाम को तब नहीं सुनायी देता जब हम अपनी तकलीफ़ों के बारे में बात कर रहे होते हैं। जब हम निज़ाम के बारे में बात करते हैं तब उसके कान बड़े तेज़ हो जाते हैं।'”
“हम जैसे लोग तभी बच पाएँगे अगर हम अपनी ज़ुबान पर क़ाबू रखना सीख जाएँ। वे लोग हमें मारें-पीटें भी तो भी हमें सिर्फ़ अपने में बुदबुदाना चाहिए, ऐसे कि हमारे पड़ोसियों को भी हमारी साँसों की ख़बर न मिले।”
“अगर ज़मीन से ऊपर आपने अपना सिर उठाया ही नहीं तो फिर आप जीवित भी कैसे कहलाए जाएँगे?”
“किसी भी भेड़ की गर्दन और उसके सामने के पैर रस्सी से बँधे हुए नहीं थे। रस्सियों से सिर्फ़ स्वाभिमानी बकरियों को बाँधा जाता था ताकि उन्हें ज़बर्दस्ती चलते हुए ज़मीन की ओर सिर झुकाना पड़े। बकरियाँ हमेशा ख़ुद को बंधन से आज़ाद करना चाहती हैं। भेड़ों पर तो कोई बंधन ही नहीं होता, इसलिए उन्हें कोशिश करने की कोई ज़रूरत भी नहीं होती। अगर आपकी फ़ितरत ही झुकना हो तो कोई आपको क्यों बाँधेगा? लेकिन फिर भी ये भेड़ें ख़ुशक़िस्मत थीं। उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि झुकने का मतलब बंधना होता है।”
“इंसान सब कुछ बर्बाद करता चला जाता है और हर चीज़ पर अपना नियंत्रण चाहता है। हर चीज़ चखना चाहता है। एक दिन ऐसा भी आएगा जब इंसानों के अलावा इस धरती पर कुछ भी नहीं बचेगा। ऐसे में इंसान भी बहुत लम्बे समय तक कहाँ बचे रह पाएँगे?”
“मरने के बाद परेशानियाँ उनके साथ चली जाती हैं। जो जीवित रह जाता है, दुःख तो उसको ही भोगना पड़ता है।”
“चमत्कार जैसी चीज़ वैसे भी विरले होती है। अगर चमत्कार हमेशा होने लगे, तो वह आम बात हो जाती है।”
“चमत्कार और प्रदर्शनियाँ तो पेट भरने के बाद ही अच्छी लगती हैं।”
“भूख की पुकार सारी पुकारों से बढ़कर होती है। जब आपने ये एक पुकार पर काम कर लिया हो तभी दूसरी किसी पुकार पर ध्यान जाता है। अगर आप बहुत पैसे वाले हैं, तब भी भूख लगने पर खाना ही खाएँगे न?”
शरणकुमार लिम्बाले की आत्मकथा 'अक्करमाशी' से उद्धरण