फूल हैं गोया मिट्टी के दिल हैं
धड़कते हुए
बादलों के ग़लीचों पे रंगीन बच्चे
मचलते हुए
प्यार के काँपते होंठ हैं
मौत पर खिलखिलाती हुई चम्पई
ज़िन्दगी
जो कभी मात खाए नहीं
और ख़ुशबू हैं
जिसको कोई बाँध पाए नहीं
ख़ूबसूरत हैं इतने
कि बरबस ही जीने की इच्छा जगा दें
कि दुनिया को और जीने लायक़ बनाने की
इच्छा जगा दें।
गोरख पाण्डेय की कविता 'इंक़लाब का गीत'