Poems: Anamika Pravin Sharma

भ्रम की दुनिया

तुम और तुम्हारे भ्रम की दुनिया
अक्सर मुझे भरमाते हैं,
जब तुम कहते हो ये घर तुम्हारा है
यहाँ की हर चीज़ पर हक़ है तुम्हारा
शायद कुछ काम याद आ जाया करता है तुम्हें

जब तुम कहते हो तुम आज़ाद हो
तुम्हारा भी अपना अस्तित्व है
मुझे यूँ ही भ्रमित कर पैरों में बेड़ियाँ भी बाँध देते हो
मैंने तुम्हें कब रोका कब टोका
हर बार यही तो कह-कहकर भरमाया है मुझे

मुँह खोल जब भी बोलना चाहा कुछ
सेलो टेप से चिपका दिए तुमने मेरे होंठ
ज़्यादा बोलने से अहमियत कम हो जाती है
कितने अज़ीब से तर्क देकर हर बार हराया है मुझे

तुम और तुम्हारे भ्रम की दुनिया
अक्सर मुझे भरमाते हैं
और मैं भावुक मूढ़ सदियों से
तुम्हारे भ्रमों का आवरण ओढ़
गहन निद्रा में स्वप्न सँजोती रहती हूँ
इसी भ्रम की दुनिया में विचरण करती रहती हूँ

रेखा

तुम कहते रहे
मैं सिर्फ़ सुनती रही
तुम आगे-आगे
मैं पीछे चलती रही
एक रेखा खींची तुमने
मैं उसे ही दुनिया मानती रही
जब-जब तुम हँसते
मैं विस्मृत-सी तुम्हें देेखती रही

मन किया तब बीज डाल गए
मैं ममता से भर उन्हें सींचती रही
तुम दुनिया की रंगीनियों में खो गए
मैं चक्की के पाटों में पिसती रही
तुम कहते ही रहे
और मैं बस सुनती रही…

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