कविताएँ: दुन्या मिखाइल (Dunya Mikhail)
अनुवाद: आदर्श भूषण

मोची (Shoemaker)

एक कुशल मोची
अपने पूरे जीवनकाल में
न जाने कितने क़िस्म के पैरों के लिए
चमड़े चमकाता है और
कीलें ठोकता है

पैर जो चले जाते हैं
पैर जो ठोकर मारते हैं
पैर जो गोता लगाते हैं
पैर जो पीछा करते हैं
पैर जो दौड़ते रहते हैं
पैर जो रौंद देते हैं
पैर जो लड़खड़ा जाते हैं
पैर जो कूदते हैं
पैर जो शिथिल पड़े रहते हैं
पैर जो काँपते हैं
पैर जो नाचते हैं
पैर जो वापस आते हैं लौटकर…

मोची के हाथों में जीवन
कीलों का एक गुलदस्ता है।

घूमना (Rotation)

मुझे पृथ्वी का घूमना महसूस नहीं होता
तब भी नहीं
जब मैं ट्रेन की खिड़की से
शहरों को एक-एक करके पीछे छूटता हुआ देखती हूँ

तब भी नहीं
जब मैं एक ही जगह
बार-बार लौटकर आती हूँ
जहाँ चिड़ियाँ भोर को चोंच में चुगकर
रौशनी के नये तिनकों की तरह बिखरा देती हैं

तब भी नहीं
जब मैं सो रही होती हूँ
और तुम्हें सपने में ज़िन्दा देखती हूँ
और जागने के बाद पाती हूँ
कि अभी मुर्दों का अपनी मृत्यु-निद्रा से जागने का समय नहीं हुआ है

तब भी नहीं
जब मैं ख़ुद को
बार-बार एक ही चीज़ बोलता हुआ पाती हूँ
जैसे शब्द नदी की धार को काटते हुए पतवार हों
और हम एक-एक करके
अपनी अनकही कहानियाँ लेकर
एक ही किनारे से गुज़रते हैं, बिल्कुल शान्त।

दुन्या मिखाइल की कविता 'मैं जल्दी में थी'

किताब सुझाव:

आदर्श भूषण
आदर्श भूषण दिल्ली यूनिवर्सिटी से गणित से एम. एस. सी. कर रहे हैं। कविताएँ लिखते हैं और हिन्दी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है।