Poems: Freke Räihä in Hindi translation
Translation: Pankhuri Sinha

मूल कविता: स्वीडिश कवि फ़्रेके राइहा
अनुवाद: पंखुरी सिन्हा

कवि परिचय: अट्ठारह कविता पुस्तकों के रचयिता फ़्रेके राइहा स्वीडन के एक विश्वविद्यालय में कविता और क्रिएटिव राइटिंग पढ़ाते हैं। उनकी कविताओं का अनेकों भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

अनुवादक पंखुरी सिन्हा सुपरिचित हिन्दी लेखिका, कवयित्री व कहानीकार हैं। उनकी कुछ रचनाएँ पोषम पा पर यहाँ पढ़ी जा सकती हैं।

* * *

शयनागार

मैं बनना चाहती थी राजकुमारी
मैं मरना चाहती थी
एक कैथोलिक की तरह
लेकिन, बावजूद इन ख़्वाहिशों के
मेरी नियति एक वेश्या की हो गई
फँसी हुई दूसरों के जबड़ों में
एक वेश्या उनकी नज़रों में!
और भी कुछ था!
बहुत पास जाने पर
केवल एक काला धब्बा
ख़ुद कालिमा बन जाती है
वह कोई और बात!
किसी अव्यक्त
और बिना नफ़ासत के कही बात
की ज़मीन की तरह
एक बेचैन-सी हड़बड़ी है
अगले पल तक पहुँचने की।
कुछ है जो सरकता है
और और पास!
साधु ने लिए अपने ख़ामोश क़दम यहाँ
चुनने का अधिकार
जो आगे बनता गया
जगह का पर्याय
और गुज़रने वाले रास्ते का
और जो बन गया
सपने देखने का भी अधिकार
इस तरह कि मुझे याद है
उसकी आवाज़ भी!
उन्होनें सुन्न कर दिए कान!
छिपा दिया जाने कहाँ
बाक़ी हर कुछ को!
मुझे याद है उन कपड़ों की
जो मैं पहनती थी।
और शरीरों की भी।
मुझे अपनी देह भी याद है!

बग़ीचा

सेब खिड़कियों से टकराकर दबे हुए
चकनाचूर, समूचा परिदृश्य बना हुआ बर्फ़ का
कल्पना से फंतासी बन गई बर्फ़
आंधी भी, घास, छोटी, धारीदार, चपटी।
सरकती चली आती हैं ये चीज़ें
युद्ध की तरह, हमारे पास।
लोग दिखाते हैं अपने सारे ताल्लुक़ात
अलगाव-जुड़ाव के धागे
अपनी गराज, मैं हमेशा देखता रहा ज़मीन
खेल और कुछ और!
घास और निकलने का रास्ता
सामने के उच्च वर्ग से बाहर
और बाहर जनता पार्क से
मेरे शहर के मेरे पते से बाहर।
हमने चढ़ाई चढ़ी और सफलतापूर्वक चढ़ी।
फ़ेंस के आगे एक छोटी दुकान थी
था एक गैस स्टेशन
दस आऊँस का एक बर्गर।
वह सबसे बड़ी चीज़ थी
जो मैंने अब तक देखी
कोई और था
अपनी लकड़ियों के वर्क शॉप के साथ
कुशल एक कोई
अपनी आरी और बाक़ी औज़ारौं के साथ
शिकार करता झाड़ियों में
जैसे फल उगता है काफ़ी ऊपर
ऊँचे में पेड़ों पर।
रहने की स्थितियाँ, सहूलियतें
सब एक अलग स्तर पर थे
अलग तरीक़े के—छत की रीढ़ की लकड़ी
रौशनी की किरणें, ताक़त के सपने
और सपने समर्पण के।
वे बहुत सारे हाथ थे
वे थे किसी भी पहचाने बंधन से मुक्त
और सीढ़ियों के बीचो-बीच खड़े हुए!

गराज

जहाँ जमा की जाती थीं
और साफ़ भी की जाती थीं
चुराई हुई चीज़ें और गाड़ी
और शर्म!
और देखने के लिए एक नज़र!

और देखना फ़्री वे के पार तक की दूरी में
जो जगह थी नए भवन निर्माण की
और जहाँ स्थापित हो रही थी
एक नई मनुष्यता!
मुझे अब भी आती है उबकाई
लिकोरिस खाते हुए!
जॉन रैम्बो, चुम्बन!
दबी हुई लम्बी, संकरी दरारों में—
विस्फोट करती दूसरी अनेक शक्लों, आवाज़ों में
ये चीज़ें, ऐनिमेशंस, कम्प्यूटर कृत ऊर्जा भरे चलचित्र!
वह एक दुनिया थी एकदम अलग। एक से हुई दो!
एक गली में थे हम!
और चाक़ू, मुझे पता नहीं वह है कहाँ
और पोर्नोग्राफ़ी भी, या फिर बन्दूक़ ही!
धीरे-धीरे कम हुई शर्म
और इसके साथ ही
खुलती गई दुनिया सेब की तरह।
और इसलिए, हमेशा अब मेरे पास रहता है
एक चाक़ू, यहाँ, ठीक यहाँ।

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