हादसा

मेरे साथ
प्रेम कम
उसकी स्मृतियाँ ज़्यादा रहीं

प्रेम
जिसका अन्त
मुझ पर एक हादसे की तरह बीता
मुझे उस हादसे पर भी प्रेम आता है।

गंध

मैं तुम्हें याद करता हूँ
दुनिया की सबसे आदिम भाषा में

दुनिया की सबसे आदिम भाषा में
मैं सिर्फ़ तुम्हें याद करता हूँ।

आदमी

उसके सामने
बहुत रो लेने और
गिड़गिड़ा लेने के बाद
मैं वहाँ से चल पड़ा

मुझे लगा वह आदमी है
आदमी की भाषा जानता होगा!

पहाड़ के बारे में

मैं नहीं जानता
पहाड़ के बारे में
ठीक-ठीक
कुछ भी
लेकिन एक पहाड़-सी लड़की को जानता हूँ

मुझ मैदानी के लिए
पहाड़, हमेशा विस्मय का विषय रहा
अपनी जिज्ञासाओं को लेकर
मैं जब उसकी गोद में लेटा
मुझे मेरी आत्मा पर लगे दाग़ दिखे

मैदानी यान्त्रिकता से दूर
मैं जब भी गया उसके क़रीब
उसने गले लगाकर मेरा स्वागत किया
स्थिर भाव से
जी-भर उसने सुना मुझे
मैं समझता हूँ
उसके कई कान हैं
हमारे दो हैं
जिन्होंने सुनना बन्द कर दिया है

मुझ जैसे लोग
जिसे समाज अपनी भाषा में उत्पाद कहता है
उसे मैं उसी की भाषा में जवाब देना चाहता हूँ
मैं लौटता रहता हूँ
पहाड़ के पास
मुझे वह भाषा सीखनी है।

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गौरव भारती
जन्म- बेगूसराय, बिहार | संप्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मुंशी सिंह महाविद्यालय, मोतिहारी, बिहार। इन्द्रप्रस्थ भारती, मुक्तांचल, कविता बिहान, वागर्थ, परिकथा, आजकल, नया ज्ञानोदय, सदानीरा,समहुत, विभोम स्वर, कथानक आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित | ईमेल- [email protected] संपर्क- 9015326408