प्रकृति सबक सिखाती है

घर के बाहर
वक़्त-बेवक़्त
घूम रहा था
विनाश का वायरस
आदमी की तलाश में

आदमी
अपने ही पिंजरे में क़ैद था

प्रकृति, पशु-पक्षी
उन्मुक्त होकर हँस रहे थे

परिवर्तन का पहिया
घूमता है ऊपर-नीचे

वक़्त का कोड़ा
कभी-न-कभी
पड़ता है सबकी पीठ पर

राजा भी जाता है
रंक के घर

दाता भी चढ़ता है
याचक की देहरी

गर्ववान भी फैलाता है
ग़रीब के सामने झोली

प्रकृति अपनी ही
राह पर चलती है बेरोकटोक

माँ की तरह
सबक सिखाती है

कभी प्यार से
तो कभी प्रहार से।

छोटे-बड़े घर

मैं कई बार
बहुत बड़े-बड़े घरों में गया

वहाँ जाकर
मैंने देखा-
बड़े-बड़े घरों में
बहुत छोटे-छोटे
लोग रहते हैं

मैं अनेक बार
बहुत छोटे-छोटे घरों में भी गया

वहाँ जाकर मैंने पाया
छोटे-छोटे घरों में
बहुत बड़े-बड़े लोग रहते हैं।

सत्यवादी झूठ

एक दिन झूठ ने
पहन ली
सत्य की पोशाक

और सच का हूबहू
सारा व्याकरण
कर लिया धारण

झूठ को ही
सच मानने लगे लोग
देने लगे मान-सम्मान

खायी जाने लगीं
झूठ की ही सच्ची क़समें

झूठ के चेहरे पर आने लगी चमक
बात-बात में उठने लगी हनक

एक दिन महफ़िल में
किसी ने कहा सरेआम-
‘अरे वाह, ग़ज़ब है यार
तुमने तो सच को भी दिया पछाड़’

सभा ने सुना दोनों का
सार्वजनिक सम्वाद

झूठ ने शब्दों को सच समझकर
हाथों-हाथ लिया
प्रशंसा का प्रसाद

और अति उत्साह में
मुस्कुराते हुए कहा-

‘धन्यवाद आप सबका भाई’

खड़े लोगों ने तालियाँ बजायीं।

कविताएँ

कविताएँ
मनुष्य के सुख-दुःख की
सच्ची साथी हैं

जब हर चेहरा
आँखों से ओझल हो रहा होता है

हिलता हुआ हर हाथ
दूर जाता हुआ दिखता है

मनुष्य के मन-मस्तिष्क
आपस में
सम्वाद कम करने लगते हैं

तब कविताएँ
अकेले आदमी के पास पहुँचती हैं

उसके कांधे पर
हौसले का हाथ रखती हैं

परेशानियों के पत्थरों को हटाकर
राह साफ़ करती हैं

दुःखों के दरिया को
स्नेह के समीर से सोखती हैं

बुझे हुए मानव में
जागरण की ज्योत जगाती हैं

कविताएँ
रूठी हुई ज़िन्दगी को मनाती हैं।

हर इंसान कुछ-न-कुछ रचता है

हर इंसान
कुछ-न-कुछ रचता है

कोई गीत-ग़ज़ल
तो कोई कविता-कहानी

कोई रंगत और रूप
कोई सुर-सरगम
कोई मूर्ति-महल

और कोई आदर्श-ऊँचाइयाँ रचता है

कुछ लोग
स्वप्न-संघर्ष रचते हैं

जो इनमें से
कुछ भी नहीं रच पाते

वे निठल्ले
कहाँ बैठते हैं?

वे भी कर्म रत रहते हैं

अपनी-अपनी
सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार

कभी चक्रव्यूह
और कभी षड्यन्त्र रचते हैं।

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जसवीर त्यागी
शिक्षा: एम.ए, एम.फील, पीएच.डी (दिल्ली विश्वविद्यालय)। सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज, राजा गार्डन, नयी दिल्ली। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ, आजकल, कादम्बिनी, जनसत्ता, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, कृति ओर, वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित। काव्य-संग्रह: अभी भी दुनिया में संपादन: सचेतक और डॉ रामविलास शर्मा (तीन खण्ड) सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित। आजकल 'डॉ रामविलास शर्मा के पत्र" संकलन-संपादन कार्य में व्यस्त। ईमेल: [email protected]

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