मौन, मृत्यु और अकेलेपन से सम्वाद करती कवयित्री लुइस ग्लुक की दो कविताएँ (लुइस ग्लुक को हाल ही में साहित्य श्रेणी में नोबल पुरस्कार 2020 प्रदान किया गया है)

अनुवाद: उपमा ऋचा

1

तुम ट्रेन पकड़ती हो
और खो जाती हो
तुम खिड़की पर अपना नाम लिखती हो
और खो जाती हो
इस दुनिया में ऐसी बहुत-सी जगह हैं,
हाँ, बहुत-सी ऐसी जगह हैं
जहाँ तुम अपना यौवन लेकर जाती हो
लेकिन कभी नहीं लौटतीं…

2

उसने कहा, मैं अपने हाथों से थक गई हूँ
मैं उड़ने के लिए पंख चाहती हूँ

लेकिन इंसान बने रहने के लिए (हाथ ज़रूरी हैं), हाथों के बग़ैर तुम क्या करोगी?

मैं इंसानों से थक गई हूँ,
मैं सूरज पर रहना चाहती हूँ!

माया एंजेलो की कविता 'मुझे मत दिखाना अपनी दया'

Book by Louise Gluck:

Previous articleरिहाई
Next articleजाते-जाते समेट ले जाऊँगा
उपमा 'ऋचा'
पिछले एक दशक से लेखन क्षेत्र में सक्रिय। वागर्थ, द वायर, फेमिना, कादंबिनी, अहा ज़िंदगी, सखी, इंडिया वाटर पोर्टल, साहित्यिकी आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलेखों का प्रकाशन। पुस्तकें- इन्दिरा गांधी की जीवनी, ‘एक थी इंदिरा’ का लेखन. ‘भारत का इतिहास ‘ (मूल माइकल एडवर्ड/ हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया), ‘मत्वेया कोझेम्याकिन की ज़िंदगी’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ द लाइफ़ ऑफ़ मत्वेया कोझेम्याकिन) ‘स्वीकार’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ 'कन्फेशन') का अनुवाद. अन्ना बर्न्स की मैन बुकर प्राइज़ से सम्मानित कृति ‘मिल्कमैन’ के हिन्दी अनुवाद ‘ग्वाला’ में सह-अनुवादक. मैक्सिम गोर्की की संस्मरणात्मक रचना 'लिट्रेरी पोर्ट्रेट', जॉन विल्सन की कृति ‘इंडिया कॉकर्ड’, राबर्ट सर्विस की जीवनी ‘लेनिन’ और एफ़. एस. ग्राउज़ की एतिहासिक महत्व की किताब ‘मथुरा : ए डिस्ट्रिक्ट मेमायर’ का अनुवाद प्रकाशनाधीन. ‘अतएव’ नामक ब्लॉग एवं ‘अथ’ नामक यूट्यूब चैनल का संचालन...सम्प्रति- स्वतंत्र पत्रकार एवम् अनुवादक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here