Poems: Manmeet Soni

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लड़का और लड़की नहीं
मर्द और औरत नहीं
पुरुष और प्रकृति नहीं-

बल्कि दो डियोडरेंट मिल रहे हैं गले

और यह एक बहुत बदबूदार दृश्य है..!

मैं, माँ और ईश्वर

माँ
ईश्वर को पूजती है

मैं
माँ को पूजता हूँ

एक धागा है
बहुत पक्का
जिसमें पिरोया गया है..

इस ग्रह का मोती..!

प्यार और नींद

ग़लत कहते हैं सब
कि प्यार में उड़ जाती है नींद

दरअसल
प्यार होता ही तब है
जब नींद में होता है आदमी..!

मुरझा गए होंगे फूल

तुम जिससे ब्याही गई हो
मेरी जगह
अब वह दे रहा होगा तुम्हें फूल

फूल सब समझते हैं
फूल आख़िर इतने भी ‘फ़ूल’ नहीं होते..!

रस्ते चलते

मुझे देखकर
स्कार्फ़ से मुँह ढँक लेने वाली लड़की..

मैंने सच में
तुम्हारे सिवाय
तुम्हारा कुछ नहीं देखा!

प्रार्थना

क़ब्ज़ेदार
कुछ पत्थरों पर क़ब्ज़े के लिए
लड़ते ही रह गए आपस में

उसने
अपने झोले से
एक प्रार्थना निकाली
और सारा मन्दिर उसका हो गया..!

पता तो करो

कुछ परिंदे
वापस नहीं लौटे..

जंगल
उन्हें भा गया
या खा गया

पता तो करो..!

बेटियों के पर्स में

कितना बुरा होगा वह समय
जब बेटियों के पर्स में
दर्पण, कंघी और लिपस्टिक की जगह
एक चाकू होगा
और एक होगा ज़हर का पाउच।

हैसियत

अपनी-अपनी हैसियत की बात है दोस्त!

तुम्हें
रस्ता कहीं का कहीं ले चला..
और वे
रस्ता कहीं का कहीं ले उड़े..!

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मनमीत सोनी
जन्म: 24 सितम्बर 1995 | जन्मस्थान: सीकर (राजस्थान) सम्प्रति: पंचवर्षीय विधि महाविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय से BA LLB (HON.) और राजस्थान विश्वविद्यालय के विधि विभाग से ही LLM किया. पिछले वर्ष NTA -NET क्लियर.

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