Poems: Mukesh Kumar Sinha

1

लिखकर
रेत पर
नाम तुम्हारा
बहा दिया उछलती लहरों में

और बस
हो गया
पूरा समुद्र
सिर्फ़ तुम्हारे नाम

कहो, दे पायेगा
कोई ऐसा उपहार!

2

दीवार से चिपकी
थरथरा रही थीं उम्मीदें

सपनों की रंगीनियों ने भी
पलकों के पर्दे में
ठिठकना उचित समझा

आख़िर वर्तमान के
स्याह आसमान में
दर्द की मूसलाधार बारिशें
झेलनी भी तो
एक अहम सलीक़ा ही है
ज़िन्दगी जीने का!

है न प्रेम का दिया विशुद्ध नज़राना!

3

तकरार के काजल पर
गर चढ़ गयी
दोस्ती की लिपस्टिक
तो समझो
दूरियाँ असम्भव!

दोस्ती ज़िन्दाबाद!

4

चूमकर माथे की
बिंदी को
बस कहा इतना

कि बिंदी-सी ही
चमकते रहना

स्नेहिल स्पर्श
की तार
खिलखिला ही गई न
लड़की को।

तब से
हर बार
उम्मीद का बोसा
चौड़ा कर गया माथे को!

यह भी पढ़ें: मुकेश कुमार सिन्हा की कविता ‘प्रेमसिक्त अक्टूबर’

Books by Mukesh Kumar Sinha:

 

 

Previous articleतरंग
Next articleभेड़ियों ने कहा शुभरात्रि

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here