पाज़ेब
पाज़ेब पाँवों में नहीं
स्तनों पर पहनने से सार्थक होंगी
जब औरतें क़दम रखती हैं
पकौड़ियों की थाली लिए
आदमियों से भरे कमरे में
उनकी गपशप के बीच
या जब औरतें खड़ी होती हैं
बॉक्सिंग रिंगों
क्रिकेट पिचों
और टेनिस कोर्टों के अन्दर
अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने
और जब औरतें खड़ी होती हैं
ऑफ़िसों में
प्रोडक्ट प्रेजेंटेशन के लिए
या जब दिखती हैं औरतें
टीवी
सिनेमाघरों
रैम्पों पर
चलते, गाते, बजाते और नाचते
या जब औरतें चढ़ती हैं सीढ़ियाँ
कविता पाठ के मंचों की
आवाज़ होती है!
घरों, सड़कों, बसों, रेलों, जहाज़ों, कार्यालयों, सभागारों, संसदों और न्यायालयों में खड़ीं औरतों ने
स्तनों पर पाज़ेब पहने होती हैं।
कंकड़-कंकड़
आदमियों के हुजूम में
आदमी कहता है
कि वह औरत होना जानता है
आदमी के हुजूम में आदमी केवल आदमी होना जानता है
औरतों के हुजूम में आदमी औरत हो सकता था
औरतें छितरायी हुई हैं
औरतों के हुजूम नहीं होते।
कंघी
पुरुषों की छाती के बालों से उलझती हैं
स्त्रियों की महत्त्वाकांक्षाएँ
स्त्रियों को सामान्य करना था
छाती पर पाँव धरना भी
सर धरने की ही तरह।
फ़ादर्स डे
छैनियों-हथौड़ों से
पिताओं ने काटे जो पर्वत
माँओं ने नापना था
उन रास्तों का एक-एक कोना
अलते रंगे पाँवों से
बेटियों ने नहीं चलना था उन लाल छापों पर
बल्कि खोज करनी थी
पीले, हरे एवं काले रंग के अलते की
बेटों को शिकंजी बनाकर पिलाना था
थकी हुई माँओं और पिताओं को।
झाड़ू के प्रकार
मेरे घर में
मुझे बड़े दिलचस्प तरीक़े के
बहुत सारे ज्ञान से अवगत कराया गया है
उन्हीं में से एक है कि
झाड़ू के दो प्रकार होते हैं
एक झाड़ू घर के अन्दर पायी जाती है
इस घर के अन्दर की झाड़ू को
भूल स्वरूप अगर पाँव से आप छू दें
तो इसका अर्थ है
कि आपने देवों-देवियों का अपमान किया है
क्योंकि घर की झाड़ू में देवी का वास है
जो धूल बाहर करके घर में धन लाती है
और अपमान करने की एवज़ में
क्षमा माँगते हुए
आपको उन्हें प्रणाम करना होता है!
दूसरे प्रकार की झाड़ू घर के बाहर पायी जाती है
उससे घर के बाहर की सड़क का कचरा एवं गन्दगी साफ़ की जाती है
भूल स्वरूप अगर आपने इस झाड़ू को पाँव से छुआ
तब इसके बाद आपको
स्वयं को शुद्ध करना होता है
स्नान करना होता है
क्योंकि उस झाड़ू में मल एवं कचरे का वास है
अपने अलावा
बाक़ी सभी का भगवान
वही घर के बाहर की झाड़ू है!
उधारी का प्रेम
तुम्हारे पास तमाम वजहें थीं प्रेम करने की
मुझे चिढ़ है तुम्हारी दलीलों से कि तुम्हारा प्रेम ‘प्रतियोगिता’ से ‘प’ उधार लेता है
मैंने तुम्हें मरने से बचाए रखा
मैं तुम्हारी खिड़की के काँच पर
आख़िरी पत्ता पेंट करती रही
बारहों महीने, सात के सात मौसम
मुझे चिढ़ है कि तुम मुझे अक्सर बताने आते हो
कि पतझड़ का दुःख क्या होता है
तुम इस दफ़े खिड़की से नहीं
दरवाज़े से ताकना
तुम देखना कि तुम्हारा कमरा
एक बंजर ज़मीन पर बने मकान का हिस्सा था
जहाँ पेड़ नहीं थे
और मेरा प्रेम ‘प्रथाओं’ से ‘प’ उधार लेता रहा।
याद है वो सपना जिसमें तुम बरबस घबराए—
एक पार्क में झूला झूलती तुम्हारी बेटी
उसके नज़दीक खड़ी औरत
वो जो तुम्हारी प्रेयसी की माँ बनने की कोशिश कर रही थी
तुम उसे अपनी बेटी की माँ बन जाने देना
मुझसे और तुमसे तो ‘प्रतिशोध’ प्रेम का ‘प’ माँगने आता है
मेरी और तुम्हारी तरह नहीं होगी वो औरत
उसका प्रेम ‘प्रायश्चित’ से ‘प’ उधार लेता होगा!
प्रेम
मैं बदसूरत दिखने लगी हूंँ
मेरे निचले होंठ से कुछ चिपका है शायद
उसमें से खाल गिरती है
कुछ चार दिन हुए
वह चिपकी हुई चीज़
निचले होंठ का हिस्सा हो गई है
आँखों के ऊपर की नसें खिंचती हैं
और नीचे का काला, गहरा काला हो गया है
मेरे कान ख़ाली हैं
उन पर पुराने झुमकों का भार है
मेरे शरीर पर नये उग आए बाल चुभ रहे हैं
मेरे सिर की सतह पर
किसी इंसानी हाथ के नाख़ूनों से निकली गन्दगी जम गई है
जैसे कोई बच्चा
गन्दे पानी के गड्ढे में
एक पाँव गिराकर कीचड़ उछालता है
ठीक उसी तरह
हवा मेरे शरीर पर गिरती है
और मेरी बदसूरती दुनिया में उछाल रही है।
दुनिया को सही, सच्चा और सुन्दर होना था
मैं, एक गन्दे पानी का गड्ढा
प्रेम, एक ऊब चुके बच्चे का पाँव
और दुनिया, कीचड़ से अधिक
और कुछ भी नहीं।
प्रेम कहानियाँ
उस उम्र में मैं अपनी उम्र से चौदह महीने कम उम्र के लड़के और चौदह साल ज़्यादा उम्र के आदमी से प्रेम कर चुकी थी!
मुझे फ़र्क़ महसूस हुआ था!
सिवाय एक बात के, जो शायद पुरुष होने के कारण साझी विरासत की तरह साथ रखते हैं ये
कि वो लड़का और वो आदमी दोनों ही बेपरवाह होने की सहूलियत में जीते थे
वो हर भाव जिनको मैंने शब्द दे दिए हैं
जो कविताएँ मैंने लिख दी हैं
एक वक़्त के बाद मुझे उन पर यक़ीन करना पड़ा है
जो मैंने नहीं लिखा, उसे मनगढ़ंत मानकर उससे छुटकारा पा लेना मुझे पसन्द है
उस आदमी का नाम पराग था!
लड़के का असल या काल्पनिक नाम लेने से मैं परहेज़ करना चाहती हूँ
यह हमारे बीच हुई तीन सबसे गम्भीर बातों में से एक थी
कि वो मेरी अच्छी कविता और ख़राब याद के रूप में मेरा इतिहास नहीं बनना चाहता था!
यह बात थोड़े बिना सजे हुए शब्दों में उसने मुझसे ख़ुद कही थी!
पराग पर मैंने कोई कविता लिखी हो
ऐसा मुझे याद नहीं आता।
यक़ीनन मनगढ़ंत साबित कर देने के प्रलोभन में।
और क्योंकि मैंने नहीं लिखा
तो मैं अब भी पराग पर प्रेम नकार सकती हूँ!
मैंने देखा है मुझे प्रेम लिखने में थकावट होती है
तुम मेरी इक्कीस की उम्र की थकान बन गए थे!
इन सब में मेरी सबसे बड़ी समस्या यह है
कि मुझे दुःख है
कि किस तरह घाव के इर्दगिर्द पराग भी
धूल का काम करता है!
मेघदूत
मैं कोई श्रापित यक्ष नहीं थी
मैंने मेरी सहूलियत से रामगिरि को चुना था
उम्र-भर मेघों को दूत बनाकर
मैं कोई आषाढ़ी सम्बन्ध रखने की इच्छुक नहीं थी
तुम बस अन्तिम वक़्त से पहले मिल जाना
अन्त में केवल बुज़ुर्ग का किरदार शेष रहता है
लकीरें उभर चुकी होती हैं
रंग गहरा चुका होता है
मैंने देखा है
मैंने जब-जब प्रेम प्रमाणित करने की कोशिश की है
वह मेरी पलक पर आकर बैठ गया है
इस संसार में हर भोर जितनी आँखें भारी होती हैं
वे यक़ीनन वही प्रेम अपने सर संजोती हैं
जिसका प्रमाण नहीं दिया गया
वह प्रेम हर मुमकिन कोशिश करता है
आप का रतजगा सरेआम करने को
एक अरसा बीता
मुझे याद नहीं कि मेरी माँ ने काजल पारना छोड़ा हो।
'स्त्रियों ने कोई कृत्रिम धर्म क्यों न बनाया?'
Aapki prem kaveeta pasand aayi