प्रिया सारुकाय छाबड़िया एक पुरस्कृत कवयित्री, लेखिका और अनुवादक हैं। इनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें नवीनतम ‘सिंग ऑफ़ लाइफ़ रिवीज़निंग टैगोर्स गीतांजलि’ है और अन्य रचनाओं में नॉवेल ‘क्लोन एंड जनरेशन 14’, नॉन-फिक्शन ‘बॉम्बे/मुम्बई:इमर्शंस’ और क्लासिक तमिल अनुवाद भी शामिल हैं। प्रिया पोएट्री एट संगम की फॉउन्डिंग एडिटर हैं।
अनुवाद: किंशुक गुप्ता
गीत 6, जीवन का संगीत गाओ, टैगोर की गीतांजलि का पुनरीक्षण
जीवन की वही धारा जो मेरी धमनियों
में बहती है, वही संसार में प्रवाहमान है।
वही जीवन जो धूल के माध्यम से
घास के तीखे कोनों में प्रवाहित होता है
और बदल जाता है पत्तों और फूलों में
वही जीवन जिसे हलराया जाता है
जन्म और मृत्यु के
समुद्री-पालने में
मेरे अंग उसके स्पर्श से
यशस्वी होते हैं।
मेरा गौरव है इस जीवन का धड़कता
नृत्य।
~
वही जीवन
वही जीवन
वही जीवन
मेरे रक्त में।
जीवन का संगीत गाओ, टैगोर की गीतांजलि का पुनरीक्षण (कॉन्टेक्स्ट बुक्स/वेस्टलैंड पब्लिशर्स, 2021) में सर्वप्रथम प्रकाशित
समय की सभा: कालीदास से संवाद : वर्षा
“इस ऋतु की गीली अंगुलियाँ जंगल में फूल और पत्तियाँ रखती हैं
धीरे-धीरे घिरते निचले बादल तनहा स्त्रियों के दिलों में दुख भरते हैं।” —कालिदास
वर्षा
एक समय
कोई क्षितिज नहीं था
धरती और आकाश
वर्षा की गोद में मिल गए थे
जब तुमने मुझमें प्रवेश किया था।
अब मैं अकेली लेटी हूँ।
मेरी दृष्टि स्पष्ट।
मेरी देह सम्पन्न
बीतती फुहारों की
स्मृतियों से।