हम-तुम

हम तुम कल तक जो एक व्यक्ति थे
आज महज एक ख़बर हैं
कल तक हमारी भावनाएं थी
आज विचार-तर्क हैं
हमारी तुम्हारी पीड़ाएं
अब एहसास नहीं, आवाज़ हैं
हम तुम कल तक जो एक व्यक्ति थे
आज महज एक ख़बर हैं

क्यूँ हुआ ये विरोधाभास
अक्सर सोचा करते हैं हम तुम
न जाने कब ख़त्म होगी
यह अँधेरी लम्बी सुरंग
कोई निष्कर्ष नहीं
कितना मोह है हमें अपनी सीमाओं से
यह तो तय है कि
एक ज़रूर उत्तरदायी रहा होगा
एक पल, एक क्षण की भूल का
एक ज़रूर साक्षी रहा होगा
असीम आनन्दानुभूति का
उसी एक पल, उसी एक क्षण का
स्मरण कर
आओ आरंभ करते हैं
पुनः अतीत हुए क्षणों को
आत्मसात करना
सुखानुभूति के प्रथम अरुणोदय से
संवेदना के अंतिम अध्याय तक।

अक्सर

अक्सर… बहुत मुश्किल होता है
अपनी पीड़ा को शब्द दे पाना,
और,
अभिव्यक्त कर पाना
क्योंकि-
बहुत बार जब
दर्द की सीमाएँ,
आत्मा की दीवारों को छीज डालती हैं
आँखों को नहीं दिखते कुछ शब्द,
जो माप सकें दुःख की गहराई को
क़लम को नहीं मिलते कुछ शब्द ,
जो बाँच सकें व्यथा की अनुभूति को
हृदय की नहीं सुनते कुछ शब्द,
जो पकड़ सकें
मर्म की विह्वलता को।
अक्सर… बहुत मुश्किल होता है…

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रागिनी श्रीवास्तव
मूलतः कविता कहानी व आलेख लेखन। कादम्बिनी, अहा!ज़िन्दगी व दैनिक जागरण में प्रकाशन। आकाशवाणी गोरखपुर से कविताओं का प्रसारण। साझा संग्रह "कभी धूप कभी छाओं" में कविताओं की साझेदारी।

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