उनींद
नदी की बाँहों में पड़ा पहाड़
सो रहा है
और
पूछे-अनपूछे प्रश्नों के जवाब
बड़बड़ा रहा है।
अनमेल
लोगों के कहने से
कह तो दिया कि साथ बहेंगे
पर मन नहीं मिल पाया
गंगा का पानी अलग है
अलग यमुना का पानी।
सीख
नदी जब रुकी
गंदला गयी
समझने वालों को बात
कुछ बतला गयी—
चलना ही है जीवन की निशानी
बहने दो पानी।
असहायता
नदी
ना, ना करती रह गयी
उस मनचले ने उसका
लूट लिया पानी।
ग़ुलामी
ग़ुलामी
चोलियाँ बदलती हैं
उसका अन्त नहीं होता
विदेशी को भगाया हमने
ख़ुद के ग़ुलाम बन बैठे।
गीत
पहाड़ पर
चरवाहे ने गीत गाया
गाँव में
हल्के से किसी का
आँचल सरका।