Poems: Roopali Tandon
1
प्रेम में पड़ी स्त्री
अबोध शिशु के
समान होती है-
पहचानती है बस
स्नेह की भाषा,
पलटती है केवल
लाड़ की लिपि पर,
सूँघ लेती है गन्ध
पवित्र भावनाओं की,
किलकारियाँ मारती है
पा लेने पर इष्ट को,
मचलती है सुनकर
प्रेमी की आवाज़
ईश्वर स्वयं बचाते हैं
प्रतिपल नासमझ को,
प्रेम में डूबी स्त्री ईश्वर
की गोद में खेलती है
2
वो सारे लोग जो
मेरा परिचय केवल
अपमान से करा सके
मैं चाहती हूँ कि
उनके हिस्से में आएँ
सोने के बरतन और
चाँदी के फल
क्षुब्ध जागे अटूट
वह रोएँ फूटफूट
न मिले कोई बाँटने
वाला हृदय की पीर
और वो जानें
निराशा किस
चिड़िया का
नाम है!
3
स्त्री को
जानना ईश्वर
के मंत्रों को
गुनगुनाना है
स्त्री को
समझना
प्रकृति की
बारहखड़ी
पढ़ना है…
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