कुछ संगीतों के लिए वर्तमान वैक्यूम होता है

एक तरह का संगीत था
मैंने सुना था फ़िल्मों में
ख़ास क्षणों में बजता था
जब भी बजता
सब धीमा-सा हो जाता

समुद्र तट पर नायक के बाँहें फैलाते ही
फूट पड़ता था वह संगीत
लहरों की गति धीमी पड़ जाती थी

विरह की रात में
सड़क पर चलते हुए नायक का
निराशा में गर्दन झुका लेना
बुलावा था उस संगीत का
हल्की-हल्की बरसात का

नीरवता भरे क्षणों में
विरह के भारीपन से लदे दृश्यों में
तमाम महत्त्वपूर्ण घटनाओं के दौरान
बजता था वह संगीत
धुन अलग-अलग, वाद्य-यंत्र अलग-अलग
लेकिन जिस गति से मुझे भेदता
वह समान
उसका स्पंदन जिस तरह मेरी हृदयगति से ताल मिलाता
वह भी समान

मैं अपने जीवन का नायक
मैं स्वयं को देखता था उन जगहों पर
जहाँ हर घटना संगीतमय होती थी
जहाँ अब तक नहीं गया था मैं

समुद्र तट और ऊँची-ऊँची पहाड़ियों पर
उन सब जगहों पर
जहाँ फ़िल्में घटित होती हैं
पहुँचकर महसूस किया मैंने
एक अधूरापन
वही दृश्य था, सब कुछ वही
पर मेरे बाँहें फैलाने के बावजूद
जो संगीत बजना चाहिए था
नहीं बजा

मेरा बाहें फैलाना निरर्थक
मेरा आकाश में देखना निरर्थक
मेरा निराशा में ज़मीन की ओर देखना निरर्थक

लेकिन जिस तरह धीमे से मस्ती में उड़ रहा था बाज़
लहलहा रहे थे पेड़-पौधे
बूढ़े दुकानदार की बीड़ी से निकल रहा था नाचता हुआ धुआँ
मैं कैसे मान लेता कि यह सब
किसी संगीत की ताल पर नहीं हो रहा था

सालों बाद मैं आज करता हूँ याद वह क्षण,
और सुन पाता हूँ उस संगीत को बजते हुए,
बाज़ को उड़ते हुए,
पौधों को लहलहाते हुए
धुएँ को नाचते हुए

कुछ संगीत सिर्फ़ स्मृति में ही सुने जा सकते हैं।

मोबाइल टावर पर कबूतर

मोबाइल टावर के ऊपर
बैठे रहते हैं कबूतर

अदृश्य सिग्नलों और तरंगों में
चोंच मारते हैं,
कान लगाकर
हमारी बातें सुनते हैं

हमारी निजता की गुप्त दुनिया में
रोशनदान बनाते हैं।

मेरी तुम्हारी फ़ोन पर बात हो रही है
और मैं उस कबूतर को देख रहा हूँ
जो टावर पर बैठा हुआ है

मैं तुमसे बाय कहूँगा
और वह उड़कर मेरी कमरे की खिड़की पर आ पहुँचेगा

गर्दन हिला-हिलाकर
मसखरी भरे गुटरगूँ करेगा
जैसे भाभी हँसती हैं मंद-मंद
मुझे तुमसे बात करते हुए
देख लेने पर।

मेरे जीवन में कितना हस्तक्षेप है तुम्हारी मृत्यु का (तीन कविताएँ)

1

मृत्यु के द्वार पर खड़े होकर
की होगी मेरी प्रतीक्षा
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में बिखरने को आतुर
अपनी चेतना को समेटकर
एक आख़िरी बार
बंद होती पलकों के धुंधलके से
झाँककर देखा होगा
और मेरी जगह पाया होगा
मेरा न होना
ईश्वर जिसे तुम इतना मानते थे
उसके सामने गिड़गिड़ाए भी होंगे
कि मुझे लाकर खड़ा कर दे सामने
कोई तो बात होगी
जो मुझसे कहना चाहते होंगे
कितनी बातें थीं
जो हवा में ठहरी रह जाती थीं
माँ और आपके बीच
मेरे सामने आ जाने भर से
बच्चा कब इतना बड़ा होता है
कि उसे यह बताया जा सके
कि उसका पिता एक ऐसी बीमारी से
जूझ रहा है
जिसे विजेता घोषित किया जा चुका है
पहले ही
मैं बड़ा हो गया
अपना और माँ का पेट काटकर
जिसे पढ़ाया-लिखाया
बताओ किस काम की थी वह पढ़ाई
मुझे अब तक नहीं आया
ठीक से शोक मनाना
कोरे पन्नों को छूता हूँ
तो कफ़न का छूना याद आता है
मेरी क़लम छोड़ो
मेरा हाथ छोड़ दो पिता।

2

फूल
अगरबत्तियाँ
घी का डिब्बा
कैसी सुगंधों का मिश्रण था वह

आँगन में मसखरी करता धुआँ
पंडित के मंत्रोच्चारण करते होंठ
कैसे-कैसे दृश्य

ऐसी प्रबल मृत्यु,
कि माँ, बहन और मैं
हम सब मर गए
पिता के साथ
थोड़ा-थोड़ा।

3

गली मोहल्लों में हुई मौतों में,
हर लाश में तुम्हारा चेहरा होता है
हुजूम को देखकर
लगता है डर
माँ की फूटी चूड़ियों के टुकड़े
मेरी छाती में गड़े हैं
दया की दृष्टि से देखती सैंकड़ों आँखें
मेरे शरीर में चस्पा हैं
मेरे जीवन में
कितना हस्तक्षेप है
तुम्हारी मृत्यु का।

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शिवम तोमर
संस्थापक एवं सह-संपादक पोयम्स इंडिया ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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