Poems: Somesh Sodha

जाति

मैंने एक से उसकी जाति पूछी
उसने गर्व से उसका बखान किया,
मैंने दूसरे से उसकी जाति पूछी
उसने नज़रें नीची कर के जवाब दिया,
मैंने एक भैंस से उसकी जाति पूछी
उसने लम्बी चुप्पी साध ली,
मैंने फिर उसकी जाति पूछी
उसने खींचकर दुलत्ति मार दी,
भैंस की जाति बस भैंस है
इंसान की जाति सैंसलैस है!

शाम का एक दृश्य

मैं अपनी प्रेमिका के साथ बैठा उसके हाथों में हाथ रखता हूँ और दिन, उसके हाथों के रंग की तरह होकर शाम में बदल जाता है
इधर सड़क की दूसरी तरफ़ एक मज़दूर, हाथों में फावड़ा और कुदाली लिए अपने घर की ओर जा रहा है
जो उस फ़ावड़े से एक पूरा दिन खोदकर अपने लिए शाम निकालकर लाया है
शायद उसकी कोई प्रेमिका नहीं है
मैंने उसके हाथों में हमेशा फावड़ा ही देखा है
किसी के हाथ नहीं!

Previous articleअनुभूति गुप्ता की कविताएँ
Next articleतुम कलयुग की राधा हो

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here