प्रलय के अनगिनत दिन

आज फिर एक डॉक्टर की मौत हुई
कल पाँच डॉक्टरों के मरने की ख़बरें आयीं
इनमें से एक स्थगित कर चुकी थी अपनी शादी
दूसरे ने छोड़ा था पिता का अन्तिम संस्कार

मर गए कुछ बस ड्राइवर भी
एक ने मुसाफ़िर को स्टेशन पहुँचाया था
जो हॉस्पिटल के सामने वाले
बस स्टॉप से ही चढ़ा था…
यों सभी को पता है
ख़बरों की प्रलय
पलकों का हृदयाघात रही आयी हैं प्रारम्भ से

क्या ख़बर इससे पहले कभी बेतरह
नाउम्मीदी के उदास वॉयलिन-सी
मनुष्य के ऊर्जा चक्रों पर बजी है?
न्यूयॉर्क में लाशें अपनी पंक्तियों में
आगे आने के इंतज़ार में हैं
और सूरज अपनी साइकिल लेकर खड़ा है
उन्हें ले जाने के इंतज़ार में,
अपनी बारी न आने पर
निस्तेज लौट रहा है रोज़।

बेरेज़्का

उस दिन अनेक लोकों की यात्रा
मैंने अज्ञातकाल तक पूरी की।
जान गई अप्सराएँ फ़लक से उतरती हैं
शफ़्फ़ाफ़ सफेद वस्त्रों में,
फिर ट्यूलिप के खेतों में होली खेलती हैं
ग्रीष्म एक अनमोल वसंती रत्न होता है
ठण्डे देशों के ताज में

अभी आँखों ने इस मंज़र को हासिल ही किया था
कि… फिर बदला यह दृश्य
कुछ ज़्यादा ही लहरायीं समुद्र की लहरें गहरी नीली होकर
धीरे-धीरे तैरने लगीं नन्हीं हँसमुख नौकाएँ,
जिनकी पतवार बड़ी मज़बूती से थामी थीं
इन अप्सराओं के कोमल हाथों ने,
दर्शकों की निगाह में ख़ुशियों के झिलमिलाते मोती ठिठकाए थे
मृत्यु लोक की इन अप्रतिम सुन्दरियों ने,
वे खे रही थीं नौकाओं के साथ एकता भी
लहरों का रंग बदलती हुई रच रही थीं
अकल्पनीय सौन्दर्य और बेहतरीन समन्वय की परिभाषा
वे विश्व के सभी सागरों की मंज़िल थीं

जब इस दृश्य में मेरा दिमाग़ी पैराशूट
पूरी तरह उतर गया तो वहाँ लार्च वृक्ष के झुण्डों ने
ढक दी समूची धरती,
तभी एक सुरीली धुन के आह्वान से खुलीं मेरी आँखें
जो बललाएका और वॉयलिन का अद्भुत संगम थीं
सोच रही थी मैं… जो देखा अभी-अभी,
और
सुना गहन, अपरिभाषित तल्लीनता में,
कोई दिवास्वप्न था?
या फिर हक़ीक़त में बदले जाने को आतुर एक दरख़्वास्त

हाँ… यह यक़ीन को मुश्किल बनाता सच है
तमाम ज्ञात-अज्ञात संसारों की सुसंगति हैं बेरेज़्का* की नर्तकियाँ।
उनका मुलायम स्पर्श पृथ्वी की थकी हुई माँसपेशियों की मालिश है
सभी मनुष्यों को एकाकार करती हैं वे उन्हीं की रुचियों के संसार में
हमारे अवचेतन पर धीरे से गिरते हैं उनके संकेतों के फूल,
आँखें मलते हुए इस भौतिक संसार में उन्हें देखते हैं हम
भारहीन पंखुड़ियों में बदलकर ठोस धरातल पर तैरते
और पृथ्वी ग्रह की परिधि से ज़्यादा लम्बी यात्रा करते
अहर्निश, धीमी सामूहिक गति से
मनुष्यता का वास्तविक अर्थ समझाते।

*बेरेज़्का नृत्य कला में माहिर स्त्रियों की सामूहिक टुकड़ियाँ है, जिसकी स्थापना 1948 में सोवियत संघ में हुई, जो एक प्रकार का रूसी लोकऩृत्य समझा जाता है। ये इसे एक लम्बे गाउन में प्रस्तुत करती हैं। उनकी नृत्य तकनीक ऐसी है जिससे वे धरती पर तैरने जैसा अद्भुत सामूहिक दृश्य अपने छोटे-छोटे क़दमों से प्रस्तुत करती हैं। अब तक की प्रस्तुतियों में पृथ्वी की परिधि से ज़्यादा चल चुकी हैं।

मैं काँटों से लिपटकर फूलों का इस्तक़बाल करती हूँ

(ब्रिटेन की भूतपूर्व प्रधानमन्त्री टरीसा मे के लिए)

मेरी ज़िन्दगी की सड़क जब मेरा आसमान, ज़मीन और हवा बनती है
ज़माना नींद के आग़ोश में ख़्वाहिशें जगा रहा होता है।
जब मैं काँटों से लिपटकर फूलों का इस्तक़बाल करती हूँ
ज़माना नीमबेहोशी में मुस्कुरा रहा होता है।
जब मैं मुख़ालिफ़त की सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती हूँ
संसद की दीवारों के नश्तर मुझे रेशमी लिहाफ़ ओढ़ाते हैं।

जब अबू क़तादा की ख़याली मिसाइल
मेरे ख़्वाबों का ब्रिटेन ध्वस्त करके
अवाम का भविष्य राख करने की ज़ुर्रत करती है
मैं वह घनघोर बिजली होती हूँ
जो सीधे तंत्रिका तंत्र को नेस्तनाबूद करती है

मैं एक कुशल कूटनीतिज्ञ कही जा सकती हूँ
जब मैं तल्ख़ी भरा हाथ रूस के प्रधान से मिलाती हूँ
मेरी पुतलियों की चाँदनी पर
जब ब्रेक्सिट की काई जमती है,
अपनी दृष्टि की हरियाली बचाने
मैं अपने जड़ें छोड़ देती हूँ।

वैसी ही रहती हूँ फिर सियासत में मैं,
जैसे समुन्दर की लहर का वह फेन
जो साहिल से गले मिलता है
और…
नहीं ठहरता दृश्य में;
हो कर भी जो नहीं रहता,
जैसे आँखों से देखे जाने के लिए
आँखों की कोरों पर टिका पानी,
जैसे कराहती ईंटों की दीवार में
छिपी लोहे की सख़्त दीवार।

तिथि दानी
जन्मदिन व जन्मस्थान- 3 नवंबर को जबलपुर (मध्य प्रदेश) में अब तक परिकथा, पाखी, शुक्रवार, अक्षरपर्व, वागर्थ, लमही, पूर्वग्रह, लोकस्वामी, सनद, संवदिया, नेशनल दुनिया, दैनिक भास्कर, पीपुल्स समाचार, जनसंदेश टाइम्स , दिल्ली की सेल्फी, लोकस्वामी, जनसत्ता साहित्य विशेषांक, नई दुनिया, दुनिया इन दिनों -साहित्य वार्षिकी 2, समावर्तन का रेखांकित स्तंभ, देश की सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका ‘पहल’, समय के साखी, आजकल आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, कहानी, लेख प्रकाशित। सिताबदियारा, पहलीबार, बिजूका ब्लॉग पर भी कविताएं। ई पत्रिका कृत्या में कविताएं प्रकाशित। वेबदुनिया में आलेख शामिल, दूरदर्शन और आकाशवाणी में रचनाओं का पाठ।कविताकोश में कविताएं सम्मिलित। राजस्थान पत्रिका में साक्षात्कार प्रकाशित। हाल ही में प्रकाशित यूरोप की अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन पत्रिका ‘वर्ड्स एंड वर्ल्ड्स’ में अंग्रेजी कविता लेखन के साथ ही हिंदी अनुवाद का प्रारंभ। किताब- पहला कविता संग्रह – ‘प्रार्थनारत बत्तखें’ भारतीय ज्ञानपीठ से 2018 में प्रकाशित कविता संग्रह। दूसरी किताब – 2019 में सर्व भाषा ट्रस्ट से प्रकाशित ‘हां क़ायम हूं मैं’ काव्य संकलन में कविताएं शामिल सम्मान- भारतीय उच्चायोग, लंदन की डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी हिदी साहित्य प्रकाशन अनुदान योजना के तहत पहले कविता संग्रह की पांडुलिपि सम्मानित। ‘हिंदी गौरव सम्मान’ म.प्र. साहित्य सम्मेलन का प्रतिष्ठित ‘वागीश्वरी सम्मान’। कॉलेज में अध्यापन, आकाशवाणी में कंपियरिंग, विभिन्न पत्रिकाओं के बाद पी7 न्यूज़ चैनल और फिर नई दुनिया में पत्रकारिता। यूके में 1 वर्ष शेफ के तौर पर काम। संप्रति- फिलहाल अस्थायीप्रशासकीय कार्य और स्वतंत्र लेखन। ईमेलआईडी- [email protected]