महामारी में जीवन
कोई ग़म नहीं
मैं मारा जाऊँ अगर
सड़क पर चलते-चलते
ट्रक के नीचे आकर
कोई ग़म नहीं
गोहरा खा जाए मुझे
खेत में रात को
ख़ुशी की बात है
अस्पताल भी नहीं ले जाना पड़े
कोई ग़म नहीं
ट्रेन के आगे आ जाऊँ
फाटक क्रासिंग पर
पटरियों के चिपक जाऊँ
बिल्कुल दुक्ख न पाऊँ
अगर हत्यारों की गोली से
मारा जाऊँ तो और अच्छा
आत्मा में सुकून पाऊँ
कि जीवन का कोई अर्थ पाया
और भी कई-कई बहाने हैं
मुझे बुलाने के लिए मौत के पास
और कई-कई तरीक़े हैं मर जाने के भी
लेकिन इन महामारी के दिनों में
घबरा रहा हूँ मरने से
उमड़-घुमड़ रहा है मेरे अन्दर जीवन
आषाढ़ के बादलों की तरह
जबकि हर सू मौत अट्टहास कर रही है!
ख़्वाबों की दुनिया
एक बच्चा
दूसरे बच्चे को देख ख़ुश होता है
मुस्कराता है
लेकिन उदास है
कि दोनों ही के पास खिलौने नहीं हैं
एक बच्ची
दूसरी बच्ची को देख ख़ुश होती है
खिलखिलाती है
लेकिन उदास है
कि अगले सावन में
वे दोनों मिल पाएँगी भी या नहीं
एक औरत
दूसरी औरत को देख ख़ुश होती है
हँसती है
लेकिन उदास है
कि दोनों ही अपने पतियों की सतायी हुई हैं
एक कवि
दूसरे कवि को देख ख़ुश होता है
गले मिलता है
लेकिन उदास है
कि यह दुनिया
दोनों ही के ख़्वाबों की दुनिया नहीं है!
विजय राही की कविता 'देवरानी-जेठानी'