यंग शन शुन इक्कीस साल की हैं, पर उनकी कविताएँ उनकी उम्र से कहीं अधिक गूढ़ हैं। यहाँ तत्सम शब्दों से चौंका देना मात्र नहीं है, बल्कि भावों की गहराई है। कुछ विपरीत या असम्बद्ध सन्दर्भों का संयोजन उनकी कविता का एक प्रमुख तत्व है। इन कविताओं में एक रहस्यवाद दिखायी देता है। चूँकि यंग शन शुन एक चित्रकार भी हैं और एब्स्ट्रेक्ट आर्ट उनका पसंदीदा कला क्षेत्र है, तो वैसा ही कुछ उनकी कविताओं में भी परिलक्षित होता है। उनके यहाँ एक संघर्ष है जो आत्म को बाहरी परिदृश्य से जोड़ता है। आत्मा के बुढ़ाने जैसी बात की उम्मीद आप एक नवयुवा लेखक से नहीं रखते। यह बूढ़ा होना यदि वैचारिक उन्नति की ओर ले जाता है, तो अवश्य ही यह हर उम्र में मनुष्य का साध्य होना चाहिए। दुनिया के इस तरफ़ के हिस्से की कविता में प्रकृति के प्रति संवेदना बड़ी सहज होती है। यंग की कविताएँ भी इसकी अपवाद नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने जीवन अनुभवों एवं साहित्यिक यात्रा में विकास के साथ भविष्य में यह कवयित्री अपनी कविता के तंतुओं का बेहतर एवं संतुलित उपयोग करना सीखेगी।
उपरोक्त परिचय व प्रस्तुत कविताओं का हिन्दी अनुवाद: देवेश पथ सारिया
यात्रा
हम रोशनी के धागों से एक पर्दा बुनते हैं
हमारे बुढ़ाते दिल डरते हैं ऊष्मा से
धूल भरी खिड़कियों के पीछे
दर्द से भरे लोग यादों को छुपा रहे हैं
क्या यह रेल हमें ले जाएगी
किसी के पास, किसी ठौर, किसी समय?
यदि सब कुछ शुरू होता हो एक ग़लती से
क्या फिर भी आनन्द लिया जा सकता है
रास्ते में दृश्यों का?
हर दिन बोझिल होती जाती है हमारी आत्मा
कमज़ोर पड़ते कवच के साथ
फिर भी यत्नों के दम पर
हम पहुँचते हैं जिस भी नये बंदरगाह
वह पूछती है—
क्या तुम पहचान लोगे मुझे?
माँग और आपूर्ति का चक्र
कोई झूठ बोलकर देखो
और अपने आप फूट पड़ेगा सच
ख़ाली काग़ज़ों से भरी हुई क़लम में
गोल घेरे बनाकर भरी गई हैं दरअसल
लकड़ी और घावों पर आरी चलाकर
दी गई अंदरूनी चोटें
बर्फ़ीला अकेलापन
कूद पड़ा सूर्य में
रो रहा है वायुमंडल
गीला हो रहा है रात का आसमान
एक माचिस पर तीली रगड़ो
और निराशा जलने लगेगी
किंतु इस ख़ामोश धरती पर
मैं बारिश में भीगी हुई सिगरेट हूँ
मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं
कि तुम आओ और मुझे रौंद डालो।
अंधे तारों की हज़ारों रातें
गोधूलि बेला की रोशनी पड़ती है
जब एक तितली के पंखों पर
शीतल पहाड़ प्रकट करता है
अपनी कठोर सतह पर बैंगनी ओस
अंदरूनी और बाहरी स्वरूप जहाँ
एक हो जाते हैं
बस वहीं है अंतिम मुक़ाम
चकमक में एक दरार
ख़ामोशी को घिसती है
और बह निकलता है ख़ून
तुम्हारी आँखों के अंगारे उड़े
और बन गए
जानवरों के सींगों पर चमक
धुएँ की बारीक लकीर
नहीं कर सकती तबाह
भारी-भरकम भविष्य को
फिर भी हमारी कल्पना चली ही जाती है
त्वचा की दीवार के उस पार।
ताइवान के कवि चेन कुन लुन की कविताएँ