सविता सिंह का नया कविता संग्रह ‘खोई चीज़ों का शोक’ सघन भावनात्मक आवेश से युक्त कविताओं की एक शृंखला है जो अत्यन्त निजी होते हुए भी अपने सौन्दर्यबोध में सार्वभौमिक हैं। ये ‌कविताएँ जीवन, प्रेम, मृत्यु और प्रकृति के अनन्त मौसमों से उनके सम्बन्ध पर भी सोचती हैं, इसलिए इनका एक पहलू दार्शनिक भी है। कुछ खोने के शोक के साथ, किसी और लोक में उसे पुनः पाने की उम्मीद भी इन कविताओं में है। कवि के हृदय से सीधे पाठक के हृदय को छूने वाली ये कविताएँ सहानुभूति से ज़्यादा हमसे हमारी नश्वरता पर विचार करने की माँग करती हैं। संग्रह में शामिल शीर्षक कविता किसी अपने के बिछोह पर एक अभूतपूर्व और कभी भुलायी न जा सकने वाली श्रद्धांजलि है। —के. सच्चिदानंदन

कविता संग्रह राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है, प्रस्तुत हैं कुछ कविताएँ!

कविताएँ साभार: किंशुक गुप्ता व राधाकृष्ण प्रकाशन

नक्षत्र नाचते हैं

हमारी आपस की दूरियों में ही
प्रेम निवास करता है आजकल
सत्य ज्यों कविता में

ये आँसू क्यों तुम्हारे
यह कोई आख़िरी बातचीत नहीं हमारी
हम मिलेंगे ही जब सब कुछ समाप्त हो चुका होगा
इस पृथ्वी पर सारा जीवन

मिलना एक उम्मीद है
जो बची रहती है चलाती
इस सौरमण्डल को
हमारी इस दूरी के बीच ही तो
सारे नक्षत्र नाचते हैं
हमें इन्हें साथ-साथ देखना चाहिए
हम जहाँ हैं वहीं से।

अभी कोई बारिश नहीं हो रही

यहीं ठहरी हुई हूँ कुछ देर
ज्यों एक साँस व्यर्थ-सी थमी हुई
यहीं तुम्हें आना होगा अपने पंख समेटकर
फिर से उड़ जाने की मंशा को स्थगित करके

इस बार यहीं मिलना होगा हमारा
मैं नहीं जाना चाहती
उस अनजान नदी के किनारे
जहाँ तुम बुलाते हो बिना अपना अता-पता दिए

चांदनी रात है
तुम्हारे आँगन का कुदाल चमक रहा है अब भी
मधुमक्खियों का छत्ता शांत लटका हुआ है छज्जे के कोने में
तुम्हारी चिरपरिचित प्रेमिका—मृत्यु
नीले वस्त्र पहन साथ बैठी है
मैं उसे भगाने वाली हूँ
अपने पाँव उधार देकर

इस समय रात है—रात
चम्पा खिली हुई है
नींबू के फूल अपनी सुगंध से इस जगह को भर चुके हैं
हमारी दो बेटियाँ फिर से जन्म ले रही हैं

तुम आओ
यहाँ कोई बारिश नहीं हो रही है।

बिम्ब

मैं उन बिम्बों तक कैसे पहुँची
या वे ख़ुद किसी तारे की तरह उतरे मुझमें
कह नहीं सकती

बार-बार उन रास्तों को याद करती हूँ
जो चेतना की गलियों से लगते हैं
जिनमें ज्ञान की ईंटें बिछी हैं
ठोस पैरों को आश्वस्त करतीं
फिसलने के भय से बचातीं
फिर भी वह धुंधलका जो फैला है
मेरे और इन बिम्बों के बीच
हृदयविदारक है कविता के लिए
वह जो था कभी कहीं ठोस-सा
बस एक बिम्ब-भर है

आज की रात
तारा एक बिम्ब है।

सविता सिंह की कविता 'मैं किसकी औरत हूँ'

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सविता सिंह
जन्म: 5 फ़रवरी, 1962 हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री व आलोचक।