रोटियाँ ग़रीब की, प्रार्थना बनी रहीं!

एक ही तो प्रश्न है रोटियों की पीर का
पर उसे भी आसरा आँसुओं के नीर का
राज है ग़रीब का, ताज दानवीर का
तख़्त भी पलट गया. कामना गई नहीं!
रोटियाँ ग़रीब की, प्रार्थना बनी रहीं!

चूमकर जिन्हें सदा क्रान्तियाँ गुज़र गईं
गोद में लिए जिन्हें आँधियाँ बिखर गईं
पूछता ग़रीब वह, रोटियाँ किधर गई?
देश भी तो बँट गया, वेदना बँटी नहीं!
रोटियाँ ग़रीब की, प्रार्थना बनी रहीं!

Book by Gopal Singh Nepali:

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गोपाल सिंह नेपाली
गोपाल सिंह नेपाली (1911 - 1963) हिन्दी एवं नेपाली के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होने बम्बइया हिन्दी फिल्मों के लिये गाने भी लिखे। वे एक पत्रकार भी थे जिन्होने "रतलाम टाइम्स", चित्रपट, सुधा, एवं योगी नामक चार पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। सन् १९६२ के चीनी आक्रमन के समय उन्होने कई देशभक्तिपूर्ण गीत एवं कविताएं लिखीं जिनमें 'सावन', 'कल्पना', 'नीलिमा', 'नवीन कल्पना करो' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।

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