‘Prem Bahut Masoom Hota Hai’, a poem by Vijay Rahi

प्रेम बहुत मासूम होता है
यह होता है बिल्कुल उस बच्चे की तरह
टूटा है जिसका दूध का एक दाँत अभी-अभी
और माँ ने कहा है
कि जा! गाड़ दे, दूब में इसे
उग आये जिससे ये फिर से और अधिक धवल होकर
और वह चल पड़ता है
ख़ून से सना दाँत हाथ में लेकर खेतों की ओर

प्रेम बहुत भोला होता है
यह होता है मेले में खोयी उस बच्ची की तरह
जो चल देती है चुपचाप
किसी भी साधू के पीछे-पीछे
जिसने कभी नहीं देखा उसके माँ-बाप को

कभी-कभी मिटना भी पड़ता है प्रेम को
सिर्फ़ यह साबित करने के लिए
कि उसका भी दुनिया में अस्तित्व है

लेकिन प्रेम कभी नहीं मिटता
वह टिमटिमाता रहता है आकाश में
भोर के तारे की तरह
जिसके उगते ही उठ जाती हैं गाँवों में औरतें
और लग जाती हैं पीसने चक्की
बुज़ुर्ग करने लग जाते हैं स्नान-ध्यान
और बच्चें माँगने लग जाते है रोटियाँँ
कापी-किताब, पेन्सिल और टॉफ़ियाँ

प्रेम कभी नहीं मरता
वह आ जाता है फिर से
दादी की कहानी में
माँँ की लोरी में
पिता की थपकी में
बहिन की झिड़की में
वह आ जाता है पड़ोस की खिड़की में
और चमकता है हर रात आकर चाँद की तरह…

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विजय राही
विजय राही पेशे से सरकारी शिक्षक है। कुछ कविताएँ हंस, मधुमती, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, राष्ट्रदूत में प्रकाशित। सम्मान- दैनिक भास्कर युवा प्रतिभा खोज प्रोत्साहन पुरस्कार-2018, क़लमकार द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार (कविता श्रेणी)-2019

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