जानते हुए कि
मेरी कविताएँ
कभी तुम्हारे लिए नहीं लिखी जाएँगी,
बावजूद उसके तुम्हारे शब्दकोश से निकला
हर शब्द मेरे लिए ही होगा।

हम दोनों वह दो आँखें हैं
जो दुनिया को एक साथ देख सकती हैं,
एक नज़रिए से,
पर कदापि मिल नहीं सकती।

देह सिर्फ़ प्रतीक्षा है,
और मृत्यु
मिलन की सम्भावनाओं का स्त्रोत।

प्रेम समर्पण के प्रमाणों का स्त्रोत नहीं है,
पर इतना जानती हूँ- अगर
स्वप्न में भी मुझे कोई पीड़ा हुई,
तो भीगी हुई पलकें तुम्हारी ही होंगी।

इन सबके बावजूद नहीं पकड़ाना चाहती,
तुमको प्रेम होने की
सम्भावनाओं का कोई झुनझुना
क्योंकि कविताओं के बोध से
मन अबोध हो सकता है,
पर प्रेम का नियम
गुरुत्वाकर्षण के नियम से अधिक
प्रबल और प्रभावी है।

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