प्रेम जब घृणा से हारने लगे
पाशविकता, इंसानियत पर हावी होने लगे
सम्वेदनाएँ जब झूठ के आवरण में लिपटी हों
ख़ुशियाँ सिर्फ़ ख़ुद के हिस्से में सिमटी हों
और भूख का पलड़ा व्यंजनों से भारी हो जाए—
इस संक्रमण काल से उबरने तक
इन आँखों को देखना पड़ेगा
स्याह झूठ को सत्य बनते
सत्य को दम तोड़ते
बच्चों को रोते-बिलखते

आपकी सोच ने सम्वेदनाओं को जकड़ लिया है
किसी की मृत्यु आपको साजिश भी लग सकती है, ग़लती भी
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में शहीद अपराधी बन जाता है
गर्भ, चरित्र की व्याख्या करता नज़र आता है

मत भूलना इतिहास ये सब याद रखेगा
सब लिखा जाएगा, सब पढ़ा जाएगा
हो सकता है तुम्हारे पक्ष की निर्मम हत्या हो जाए
अथवा दूसरा पक्ष बाज़ी हार जाए
एक दिन सब रक्ताक्षरों में लिखा होगा
भूख भी, योगदान भी
अपमान भी, सम्मान भी
पर प्रेम कब हारा है…

वो इस बार भी जीत जाएगा।

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