प्यारी, बड़े मीठे लगते हैं मुझे तेरे बोल!
अटपटे और ऊल-जुलूल
बेसर-पैर कहाँ से कहाँ तेरे बोल!

कभी पहुँच जाती है अपने बचपन में
जामुन की रपटन-भरी डालों पर
कूदती हुई फल झाड़ती
ताड़का की तरह गुत्थम-गुत्था अपने भाई से
कभी सोचती है अपने बच्चे को
भाँति-भाँति की पोशाकों में
मुदित होती है

हाई स्कूल में होमसाइंस थी
महीने में जो कहीं देख लीं तीन फ़िल्में तो धन्य,
प्यारी
ग़ुस्सा होती है तो जताती है अपना थक जाना
फूले मुँह से उसाँसे छोड़ती है फू-फू
कभी-कभी बताती है बच्चा पैदा करना कोई हँसी-खेल नहीं
आदमी लोग को क्या पता
गर्व और लाड़ और भय से चौड़ी करती ऑंखें
बिना मुझे छोटा बनाए हल्का-सा शर्मिन्दा कर देती है
प्यारी

दोपहर बाद अचानक उसे देखा है मैंने
कई बार चूड़ी समेत कलाई को माथे पर
अलसाए
छुपकर लेटे हुए जाने क्या सोचती है
शोक की लौ जैसी एकाग्र

यों कई शताब्दियों से पृथ्वी की सारी थकान से भरी
मेरी प्यारी!

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वीरेन डंगवाल
वीरेन डंगवाल (५ अगस्त १९४७ - २८ सितंबर २०१५) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि थे। बाईस साल की उम्र में उन्होनें पहली रचना, एक कविता, लिखी और फिर देश की तमाम स्तरीय साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे। उन्होनें १९७०-७५ के बीच ही हिन्दी जगत में खासी शोहरत हासिल कर ली थी। विश्व-कविता से उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए हैं। उनकी ख़ुद की कविताओं का भाषान्तर बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया जैसी भाषाओं में प्रकाशित हुआ है।

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