ईश्वर के हरकारे
चल पड़े हैं
प्रेम की डाक लेकर
वसंत ऋतु में
उनके पास सभ्यता के
प्रथम प्रेम की स्मृतियों की
अनन्त कहानियाँ हैं
रोशनी के आलोक में जब
शहर स्थिर है
ठीक उन्हीं पलों में
वो प्रेम की स्मृतियों की पातियाँ
मनुष्यों के सिरहाने रख
लौट जाना चाहते हैं अपने देश
प्रेम विनिमय के सबसे सुंदरतम समय में
जब दुनिया सो रही है गहरी नींद
ये कौन-सी दुनिया के लोग हैं
जो घर-गाम छोड़कर
लड़ रहे हैं लड़ाई,
आक़ाओं ने
जिनके चारों ओर
नुकीले तारों की बाड़
है लगायी
जो गा रहे हैं प्रार्थनाओं के गीत
जाग रहे हैं
और गा रहे हैं
जाग के गीत!
इन गीतों का नूर
जिनके चेहरों से टपक रहा है
प्रेम के मौसम में
क्रान्ति के गीत गाते
ये नौजवान
न प्रेम से अनभिज्ञ हैं
न हृदय-विहीन हैैं
वे ये अवश्य जानते हैं कि
कि इस प्रेम ऋतु में
प्रेम से प्रीतिकर
जागते रहना ज़रूरी है
सभी का प्रेम करना आवश्यक नहीं
कभी-कभी कुछ लोगों का प्रेम के दृश्यों से छँट जाना भी ज़रूरी होता है
ईश्वर के संदेशवाहक
प्रेम की समस्त कलाएँ
और प्रेम की पातियाँ
उसी ज़मीन पर रखकर
प्रसन्न मन लौट आते हैं!
शालिनी सिंह की कविता 'स्त्रियों के हिस्से का सुख'