पत्र-पेटी, जिसे खोले जाने का इंतज़ार है
'Patr Peti, Jise Khole Jane Ka Intezaar Hai' by Manjula Bist
पता नहीं! जिसने पहली बार ख़त जैसा कुछ लिखा होगा उसे यह अहसास था...
मुझे विशालकाय बूढ़े दरख़्त हॉन्ट करते हैं
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्यनारायण पर माधव राठौड़ का गद्य | Prose by Madhav Rathore about Dr. Satyanarayan
मुझे विशालकाय बूढ़े दरख़्त हॉन्ट करते हैं, क्योंकि...
धरती के सबसे प्यारे भूखण्ड हो तुम
'Dharti Ke Sabse Pyare Bhookhand Ho Tum', prose in Hindi by Shweta Rai
आजकल मन की यात्रा पर हूँ। इस आयोजन के पीछे प्रयोजन यह...
जीवन में उत्सव
मौत हमेशा से मुझे बेहद रोचक जान पड़ी है। बचपन में जब पहली बार अपने एक फूफाजी की मौत की ख़बर सुनी तो चुप...
बह जाने का डर
मैं पानी का बहना देख रहा हूँ। पानी अपने साथ कितने सपने, यादें और न जाने कितनी गतियाँ बहाये लिये जा रहा है। इसके...
एक तरफा प्रेम
एकतरफा प्रेम उस पौधे की तरह है जिसे पोषित करके स्वयं ही उसकी हत्या करनी पड़ जाए या स्वयं की।
प्रेम की हत्या क्या सम्भव है?
वास्तव...
नींद का उचटना
"कभी-कभी दर्द दरिया नहीं होता, एक क़तरा भर होता है। किसी लेटे हुए ख़्याल की आँख से लुढ़ककर तकिये के गाल पर जा टपकता है।"
"ये मुहब्बत का वो महीना है जिसमें हवा बदतमीज़ हो जाती है। रात पूरी हो जाती है और मौसम की बेवफ़ाई से आहत सुबह कहीं छुप जाती है।"
दूरियाँ
"जमाना जिसे ग़ुमराही कहता है, पाँवों को रौंदता हुआ दिल उसे सुकून कहता है।"
"किसी छत की सीढ़ियों से जब कोई बच्चा तेज़ी से उतरता है तो दिल दहलता है और मुँह से डाँट और हिदायतें निकलती हैं। शायद सब ऐसे ही सीखते हैं। छत से फ़र्श तक की दूरी दहलते-दहलाते पूरी कर ही ली जाती है, कभी चोट खाकर, कभी यूँ ही। सबको ख़बर होती है कि लौटकर फ़र्श पर आना ही है।"
माफ़ीनामा
"फ़ोन हाथ में था और नम्बर ज़हन में, डायल किया, सोचा, नाहक़ दिल दुखाया, मना लूँ। कैसा लगता है जब हम अपनी ग़लतियों की मुआफ़ी के लिए सर पटकने के लिए कोई पत्थर ढूंढ़ रहे होते हैं, तब कोई लम्हा हमारी ख़िलाफ़त करता हुआ हमारे हाथ में एक पत्थर थमा के चला जाता है। हम पत्थर को सिर पर मारना भूलकर किसी और की तरफ़ फेंक देते हैं। ऐसा होता है, मगर क्यों होता है?"
लास्ट पेज नोट्स
मैं कभी मुतमईन महसूस नहीं करता। पहले सोचता था और परेशान रहता था कि क्यूँ? लेकिन अब शायद अंदाज़ा है कि ये बेचैनी जो हर...
जीवन मानो एक दावत हो
Excerpts from 'The Enchiridion' by Epictetus
जीवन मानो एक दावत हो
जीवन को इस तरह ग्रहण करें मानो वह एक दावत हो जिसमें आपको शालीनता के...